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ज़िंदा हूँ या जान नहीं है - Shaad Imran

ज़िंदा हूँ या जान नहीं है
इतना भी अब ध्यान नहीं है

मुफ़्लिस घर में बैठे कैसे
खाने को सामान नहीं है

कोई हक़ की बात करेगा
या सबको ज़बान नहीं है?

हिंदू को भी दफ़ना ही दो
बस्ती में श्मशान नहीं है

आदम जैसा दिखने वाला
अंदर से इंसान नहीं है

उर्दू से गा़फ़िल लड़की की
क़िस्मत में 'इमरान' नहीं है

अब के दुनिया बच जाएगी
इसका कुछ इम्कान नहीं है

अब भी लोग नही मानेंगे
के कोई भगवान नहीं है

'शाद' सभी का हाल यही है
एक तू ही परेशान नहीं है

- Shaad Imran

Muflisi Shayari

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