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ग़म के शजरे कहाँ से मिलते हैं  - Shadab Javed

ग़म के शजरे कहाँ से मिलते हैं
दिल के इस आस्ताँ से मिलते हैं

जितने किरदार हैं ख़राबों के
सब मेरी दास्ताँ से मिलते हैं

आपको मौत की मुबारकबाद
आप मुझ बे अमाँ से मिलते हैं

हर फुलां से मैं मिल के कहता हूँ
आप शायद फुलां से मिलते हैं

अपना हर राज़ खोलना है मुझे
चल किसी राज़दां से मिलते हैं

उसके रंगों भरे दुप्पटे को
रंग सब आसमां से मिलते हैं

रोते रहिए कि रीत भी है यही
लोग आह ओ फुग़ां से मिलते हैं

अपने छप्पर पे रश्क आता है
जब किसी बे-मकां से मिलते हैं

उस की शादाबी लौट आती है
जब भी हम गुलसितां से मिलते हैं

- Shadab Javed

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