मुमकिन हो गर तो थोड़ा सा सीधा बयान दो
थोड़ा वतन की सोच के अच्छा विधान दो
वो भाँजते है आज जो तलवार नंगी याँ
गर हो सके तो रखने को उनको मयान दो
कुछ तो चला गया है ख़ुदा के भी कान में
मुमकिन अगर हो तो ज़रा ऊँची अज़ान दो
वो तीर जिससे दुष्ट वो लंकेश ख़त्म हो
उस तीर को तो राम अभी इक कमान दो
अब देश में विकास की रफ़्तार धीमी है
अब रास्तों को थोड़ी सी तिरछी ढलान दो
रोटी गले तलक जो भरे है उसे कभी
सच कहने वाली कोई ख़ुदा तुम ज़बान दो
हर कोई अब ग़रीबों को खाने को दौड़ता
उनको बचा सके जो वही संविधान दो
मैं औलिया हूँ दर पे अभी तेरे झुक खड़ा
साहिर को कर दे ज़िंदा जो हाजी वो तान दो
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