हबाब-ए-आब के जैसी हक़ीक़त ज़िन्दगी की है
कोई जो जी रहा है तो इनायत ज़िन्दगी की है
सबब मरने का भी मुज़्मर इसी में है कहीं देखो
क़ज़ा जो ख़ूबसूरत है सबाहत ज़िन्दगी की है
मलाले ग़म कहीं पे तो कहीं जश्ने खुशी देखा
शिक़ायत हो भी क्या आख़िर निज़ामत ज़िन्दगी की है
कहाँ मुमकिन था तेरे बाद जी लेना मिरे हमदम
ये सांसें चल रही है जो सख़ावत ज़िन्दगी की है
ग़मे दिल की ही क़ीमत पर तुझे ये ज़ीस्त कैसे दूँ
तू वाजिब दाम बतला के तिजारत ज़िन्दगी की है
वो रोज़ ओ शब के हंगामे गुज़िश्ता ज़िन्दगी के ग़म
मिलेंगे सब तुझे इसमे हिकायत ज़िन्दगी की है
न रोता है कोई मुझमे न हँसता है कोई मुझमे
लगा सदमा कोई दिल को या वहशत ज़िन्दगी की है
अँधेरा हीं अँधेरा है दिले वीरान में हमदम
"अमन" तुम लौट आओ के ज़रूरत ज़िन्दगी की है
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