मैं तिरे बाद कहाँ जाऊँ बता जा मुझको
अपनी आँखों पे भरोसा नहीं होता मुझको
मेरे अपनों ने कहीं का नहीं छोड़ा मुझको
अब किसी पर भी नहीं होता भरोसा मुझको
उस सफ़र पे भी मेरे हाथ लगी नाकामी
जो सफ़र दूर से कुछ ठीक लगा था मुझको
अपनी तक़लीफ़ पे होती हैं निगाहें सब की
क्या हुआ आज किसी ने जो न देखा मुझको
अपना समझा था तुझे भूल गया था दुनिया
अब तिरे बाद सताएगी ये दुनिया मुझको
तू ने दिल में तो जगह मुझ को कभी दी ही नहीं
तू समझता था फ़क़त भीड़ का हिस्सा मुझको
चंद लोगों से हुआ करती थी अनबन उस की
और वो इस का सबब आ के बताता मुझको
कैसे मतलब के थे वो लोग जिन्होंने 'सोहिल'
देखना चाहा नहीं फिर से दोबारा मुझको
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