मुश्किलें जब भी बढीं कर दिया आगे मुझको
देने वाले ने दिए ख़ूब सहारे मुझको
भूल बैठा हूँ मिला दे कोई मुझ से मुझको
आज मेरी ही ग़ज़ल कोई सुना दे मुझको
काम आ जाऊँगा हर शख़्स के मैं थोड़ा बहुत
ये अलग बात कोई जाने न जाने मुझको
लौट कर आए न आए ये घड़ी रब जाने
कुछ घड़ी को ही सही पास बिठा ले मुझको
मेरी हालत पे तरस खाएगा गर आएगा
कोई देखे तो बहुत दूर से देखे मुझको
कूद जाऊँ कि नहीं कूदूँ मैं छत से नीचे
जाने क्या सूझने लगता है याँ आ के मुझको
क्या बताऊँ मैं तुझे भीड़ से क्यूँ कटता हूँ
रास आते नहीं बचपन से तमाशे मुझको
किस जगह ख़र्च करूँ जिस से लहू काम आए
मैं नहीं चाहता कोई भी मिटा दे मुझको
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