मिल अगर जाए तो बताए हमें
आदमी है कहाँ दिखाए हमें
दिल हमें भी है हम भी अहल-ए-ज़ुबाँ
कुछ तो कोई सुने सुनाए हमें
दिल हमारा तो मर चुका तुम से
कौन अब राब्ता कराए हमें
जो उन्हें इस क़फ़स में रहना है
आशियाना वो फिर बनाए हमें
अब ये आलम कि मरने भी हम जाएँ
बिस्तर-ए-मर्ग भी सताए हमें
ये न कर वो न कर ये क्या किया है
यूँ कहे है वो यूँ सिखाए हमें
हम भी कोई ग़ज़ल हैं राग और लय
अहल-ए-दुनिया तो गुनगुनाए हमें
हो सके हम कहीं न मर जाएँ
दिल से गर वो कभी बुलाए हमें
बिस्तर-ए-मर्ग हम जो सो रहे हैं
देखना अब कि कौन उठाए हमें
दिल में कोई हमारे है 'हैदर'
जो हमीं से वफ़ा कराए हमें
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