क्यूँ नहीं है वो मेरी क़िस्मत में
सोचता हूँ ये सब मैं फ़ुर्क़त में
दिल लगाओ उसे फ़ना कर दो
क्या यही है तुम्हारी फ़ितरत में
तुम वहाँ ख़ुश हो तन्हा करके याँ
ग़म-ज़दा बैठा हूँ जमाअत में
मैं किसी दिन तो याद आऊँगा
जब कभी सोचता हूँ फ़ुर्सत में
छोड़ना था मुझे सो छोड़ दिया
ठीक उसको लगा ये उजलत में
वो मेरी है ये जो मैं कहता हूँ
झूठ कहता हूँ मैं हक़ीक़त में
याद करके उसे उदास हूँ मैं
दिल गँवा बैठा मैं मोहब्बत में
फिर मोहब्बत हमें हुई ऐसे
हम गए थे किसी की दावत में
याद उसकी बहुत मुझे आई
जब पड़ा दोस्तों की सोहबत में
अब कोई अच्छा ही नहीं लगता
बात कुछ तो है उसकी सूरत में
साथ उसका 'वसीम' छूट गया
क्या मिला तुझको फिर अदावत में
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