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मुझ ऐसे शख़्स से रिश्ता नहीं निकाल सका - Vikram Gaur Vairagi

मुझ ऐसे शख़्स से रिश्ता नहीं निकाल सका
वो अपने हुस्न का सदक़ा नहीं निकाल सका

मैं मिल रहा था उसे बाद एक मुद्दत के
सो उससे कोई भी रिश्ता नहीं निकाल सका

तेरे लिए तो मुझे ज़िंदगी भी कम थी मगर
मेरे लिए तो तू लम्हा नहीं निकाल सका

तू देख पाई नहीं मुझको ख़त्म होते हुए
मै तेरी आँख का कचरा नहीं निकाल सका

इक ऐसी बात का ग़ुस्सा है मेरे लहजे में
वो बात जिसका मैं ग़ुस्सा नहीं निकाल सका

- Vikram Gaur Vairagi

Dard Shayari

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