ये शाहज़ादी की एक अदा है कमी नहीं है
वो बोलने जब लगे तो फिर सोचती नहीं है
कोई जो पूछे ख़मोश क्यूँ हो तो हम बताएँ
हमारी नाराज़गी है ये ख़ामुशी नहीं है
ख़ला का चेहरा मुसव्विरों ने परख लिया है
पर उसकी तस्वीर इनसे अब तक बनी नहीं है
कल उसकी आँखों में फिर से आँसू थे मुझको लेकर
तो आग अब तक दहक रही है बुझी नहीं है
मुझी को महफ़िल में ढूँढने वो हुआ था दाख़िल
मुझी पे उसकी निगाह अब तक पड़ी नहीं है
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