वो मेरे ज़ख़्म भरना चाहते थे
जुनूँ के पर कतरना चाहते थे
हम उनके बिन ही जीते जा रहे हैं
कि जिनके साथ मरना चाहते थे
अभी रोटी कमाने में लगे हैं
जो दुनिया बस में करना चाहते थे
हँसी की एक चादर ओढ़ ली है
मिरे कुछ दर्द उभरना चाहते थे
तुम अब दिल से उतरते जा रहे हो
कभी दिल में उतरना चाहते थे
हमें दुनिया के जैसा कर चले हो
हमीं थे जो सुधरना चाहते थे
सिसकते उनको भी हमने सुना है
जो दिल फौलाद करना चाहते थे
यही इक लत हमें ले डूबी माहिर
भला सबका ही करना चाहते थे
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