Chhabi Saksena Sahai Saba

Chhabi Saksena Sahai Saba

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Chhabi Saksena Sahai Saba shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Chhabi Saksena Sahai Saba's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
अरी ज़िंदगी गिला अब नहीं जो हुआ था सब वो बजा हुआ
मेरे प्यार का था जो कारवाँ वो रुका जहाँ था लुटा हुआ

मेरी आरज़ू थी कि ख़ुशनुमा हो शगुफ़्ता गुलिस्ताँ हर कुजा
तो वफ़ा की रस्में निबाह के मिला सहरा मुझ को सजा हुआ

मेरी जान पे जो गुज़र गई वो ख़ुदा की नेक अता हुई
मेरे आंसुओं की नामी से धुल के ये गुलिस्ताँ भी हरा हुआ

रहे रास्ते बड़े जाँ-सिताँ हुआ पुर-ख़तर यूँ मेरा सफ़र
ये भी हौसला था जफ़ा का जो भी मिला मुझे वो जुदा हुआ

मेरे माथे की तो शिकन पे इक बक़ा बे-रहम था लिखा हुआ
लिखा हाथ की जो लकीर पे था वो जब मिला तो जुदा हुआ

अरे दोस्तो मेरा दिल 'सबा' जो निकाल कर कभी देखना
ये जो तीर है मेरी ज़िंदगी का यूँ कब से मुझ में चुभा हुआ
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Chhabi Saksena Sahai Saba
कुछ टूटता है अंदर बोलो मैं क्या करूँ अब
ख़ामोश है बवंडर बोलो मैं क्या करूँ अब

है रंजिशों से भीगी उल्फ़त की चाँदनी भी
था चाँद ही सितमगर बोलो मैं क्या करूँ अब

वो सामने से चल कर गुज़री बहार कब की
किस सम्त है मुक़द्दर बोलो मैं क्या करूँ अब

मैं अपनी हसरतों का क्यों रंग ही न बदल दूँ
तस्वीर हो जो अबतर बोलो मैं क्या करूँ अब

कुछ और ही हुए हम ख़्वाबों से आ के बाहर
रुख़्सत हुआ फ़ुसूँ-गर बोलो मैं क्या करूँ अब

बे-दर्द है ज़माना अंजान आसमाँ है
देखो छुपे हैं ख़ंजर बोलो मैं क्या करूँ अब

फिर आज उस ने मुझ को देखा है मुस्कुरा कर
है हादसा मुक़र्रर बोलो मैं क्या करूँ अब

सय्याद ले रहा है मेरा इम्तिहाँ क़फ़स में
हर दिन हो जैसे महशर बोलो मैं क्या करूँ अब

है आस-पास मेरे गुलशन सजा गुलों से
चुभते है लाख नश्तर बोलो मैं क्या करूँ अब

किस को बुला रहा है अब इंतिज़ार तेरा
तन्हा है सारा मंज़र बोलो मैं क्या करूँ अब

गिरती सबा पे आ कर तर्क-ए-वफ़ा की बिजली
गो ख़्वाब हैं मोअ'त्तर बोलो मैं क्या करूँ अब
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Chhabi Saksena Sahai Saba
बता रोज़-मर्रा की ज़िंदगी तू ने ये वफ़ा का सिला दिया
मिरे साथ जो भी रिफाक़तें थीं सभी से पर्दा हटा दिया

मुझे छेड़ते हैं वो बारहा जो कभी बढ़ाते थे हौसला
तो मैं क्या करूँ मुझे मंज़िलों ने ही रास्ते से हटा दिया

मिरे हम-नवा मुझे आप से हैं शिकायतें भी बहुत सी अब
कि नवाज़िशों के उरूज पे क्यों चढ़ा चढ़ा के गिरा दिया

मुझे मात देते हैं मुस्तक़िल मिरी जुस्तुजू के ये क़ाफ़िले
कभी रुख़ हवा का जो साथ था उसी मोड़ पे ही झुका दिया

मिरी ज़िंदगी भी तुम्ही से है गो करम भी तेरा है मुख़्तसर
मेरे ग़म की धुँद को प्यार का तू ने सहबा जो था पिला दिया

'सबा' आज भी ये यक़ीन है जो बक़ा दुआ की पनाह में
मेरे रब ने जूँ मिरे आसमाँ को ज़मीन पर जो बिछा दिया
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Chhabi Saksena Sahai Saba
मैं हूँ ना-मुराद वफ़ा-ए-ग़म न तो मैं नसीब-ए-बहार हूँ
जो न खिल सके वही गुल हूँ मैं कि चमन का मैं वो फ़िगार हूँ

मिरे ग़म की राहों से न मिरा कभी हसरतों का सिरा मिला
मैं मोहब्बतों की गली में गुम हुआ जुस्तुजू का ग़ुबार हूँ

मेरे दिल से गुज़री जो आज तक वो हवा थी तेरी तलाश में
तुझे देख कर जो बिखर गया मैं वो टूटे दिल का क़रार हूँ

मेरी आँख से जो टपक गए वो थे मोती तेरी ही याद के
जो छुपा के भी न छुपा सका वो तिरे सितम का शुमार हूँ

तुझे पा के भी तुझे खो दिया मैं ने ख़ुद को ही यूँ गँवा दिया
मुझे नाज़ है मेरे दिल के अपनी वफ़ा का मैं ही ख़ुमार हूँ

तेरी तल्ख़ बातों से जुड़ गया 'सबा' नाम मेरा भी इस तरह
कि अभी अभी किसी ग़ैर से सुना ऐब का मैं दयार हूँ
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Chhabi Saksena Sahai Saba
तेरी इक बात पे यूँ दिल से तराने निकले
जैसे उम्मीद के जुगनू के ठिकाने निकले

क्या हुआ तेरा करम जो न हुआ गर मुझ पे
मेरी उल्फ़त के घरौंदे से ख़ज़ाने निकले

इतना आसाँ न था उन से मिरा दूरी रखना
किस तरह अज़्म को हम अपने निभाने निकले

हम ने जाना था मोहब्बत का सिला होगा ग़म
फिर भी क्या सोच के हम उम्र गँवाने निकले

उन के आने की हो आहट तो मुझे लगता है
मेरी तन्हाई सराबों से सजाने निकले

जब भी एहसास-ए-मसर्रत हुआ इक पल को तभी
नींद से दर्द को मेरे वो जगाने निकले

जो न कहना था कभी आज वो अशआ'र बनाएँ
फिर ये मा'ज़ूर ग़ज़ल सब को सुनाने निकले

तुम से जो हो न सका हम भी कहाँ थे माहिर
इश्क़ की राह पे नाकाम सियाने निकले

वास्ता इतना ही रहता है 'सबा' उन से ये
चश्म-ए-पुर-नम को सितारों से सजाने निकले
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Chhabi Saksena Sahai Saba