Nadeem Sirsivi

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Nadeem Sirsivi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Nadeem Sirsivi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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मुस्तक़िल महव-ए-ग़म-ए-अहद-ए-गुज़िश्ता होना
ऐसे होने से तो बेहतर है न दिल का होना

मैं हूँ इंसाँ मुझे इंसान ही रहने दीजे
मत सिखाएँ मुझे हर गाम फ़रिश्ता होना

देखनी पड़ती हैं हर मोड़ पे उधड़ी लाशें
कितना दुश्वार है इस शहर में बीना होना

ऐ मुसव्विर ज़रा तस्वीर में मंज़र ये उतार
दो किनारों को है देखा गया यकजा होना

हैं फ़राहम मुझे बे-राह-रवी के अस्बाब
ज़ेब देगा मुझे आवारा-ए-दुनिया होना

बस्तियाँ शहर-ए-ख़मोशाँ की तरह हैं आबाद
ज़िंदा लोगों को लुभाने लगा मुर्दा होना

ऐ परी-ज़ाद तिरे हिज्र में ये हम पे खुला
मौत से ज़ियादा अलम-बख़्श है तन्हा होना

ख़ुद ही गिर जाएगी ज़िंदान-ए-बदन की दीवार
रूह-ए-अफ़्सुर्दा को बेचैन भला क्या होना

खा गया रौनक़ें पैवंद-ओ-मरासिम की 'नदीम'
जिंस-ए-इख़्लास का बाज़ार में सस्ता होना
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Nadeem Sirsivi
शुऊर-ए-इश्क़ मिले रू-ए-दार रक़्स करूँ
हैं मेरे पास बहाने हज़ार रक़्स करूँ

गुलू-ए-ख़ुश्क की शह-ए-रग थक के कहती है
कुछ और तेज़ हो ख़ंजर की धार रक़्स करूँ

तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-दिलदार गर नसीब नहीं
ख़ुद अपने दिल का बना कर मज़ार रक़्स करूँ

बरहना जिस्म है कोहना लिबास फट गया है
सो ओढ़ कर मैं रिदा-ए-ग़ुबार रक़्स करूँ

उजाड़ दश्त में मक़्तल ये बार बार सजे
लहू में डूब के मैं बार बार रक़्स करूँ

अनी कुछ और चुभा ऐ सितम-शिआर कि मैं
तड़प के दर्द में बे-बंद-ओ-बार रक़्स करूँ

दुआ है मेरी मैं ज़ख़्मों की ताब ला न सकूँ
शराब मौत का जागे ख़ुमार रक़्स करूँ

सुना चुका सर-ए-नेज़ा मैं एक ताज़ा ग़ज़ल
'नदीम' है मुझे अब इख़्तियार रक़्स करूँ
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Nadeem Sirsivi
अरसा-ए-ख़्वाब से उठ हल्क़ा-ए-ता'बीर में आ
गुम-शुदा रो'ब-ए-जुनूँ कासा-ए-तश्हीर में आ

इंतिहा मब्दा-ए-हस्ती की फ़ना है या बक़ा
ग़ौर से देखते हैं बख़्त की तस्वीर में आ

ऐ ख़राबात-ए-तनफ़्फ़ुर के परेशान मकीं
गर सुकूँ चाहता है इश्क़ की ता'मीर में आ

हिद्दत-ए-दीद निगाहों की इबारत से निकल
और यख़-बस्ता मिरे रौज़न-ए-तहरीर में आ

चढ़ के फिर सर पे मिरे बोले असीरी का ख़ुमार
क़ैद कर ले मुझे फिर ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर में आ

अहद-ए-माज़ी के ख़ुश-आइंद भटकते लम्हे
वक़्त आ पहूँचा है अब हाल की जागीर में आ

जल-बुझे गर्मी-ए-अनफ़ास से दोनों का वजूद
घोलने ख़ुद को मिरे क़ुर्ब की तासीर में आ

लज़्ज़त-ए-वस्ल को हासिल हो ज़मीं की जन्नत
मुझ से मिलने के लिए वादी-ए-कश्मीर में आ

ज़ेर-ए-पा रख के सभी अक्स-ए-फ़ुसून-ए-तक़दीर
फिर जवाँ होने को गहवारा-ए-तदबीर में आ

ऐ ख़िज़ाँ-ज़ाद अगर चाहता है रिज़्क़-ए-बहार
दामन-ए-ज़ीस्त लिए रौज़ा-ए-शब्बीर में आ

आजिज़ी कहने लगी गर हो बुलंदी की तलब
दिल झुका दाइरा-ए-ना'रा-ए-तकबीर में आ

दिया उगते हुए सूरज ने ये पैग़ाम 'नदीम'
इन अँधेरों से निकल ख़ेमा-ए-तनवीर में आ
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Nadeem Sirsivi
गिरफ़्त-ए-कर्ब से आज़ाद ऐ दिल हो ही जाऊँगा
अभी रस्ता हूँ मैं इक रोज़ मंज़िल हो ही जाऊँगा

उतर जाने दे वहशत मेरे सर से हब्स-ए-ख़ल्वत की
मैं बित-तदरीज फिर मानूस-ए-महफ़िल हो ही जाऊँगा

गिरे गर मुझ पे बर्क़-ए-इल्तिफ़ात-ए-चश्म-ए-तर हर दम
तो मैं बिल-जब्र तेरी सम्त माइल हो ही जाऊँगा

ब-सद तरकीब रक्खे हैं क़दम तरतीब से मैं ने
अगर तरतीब ये बिगड़ी मैं ज़ाइल हो ही जाऊँगा

मता-ए-जाँ तो मेरी ज़ात का हिस्सा है इक दिन मैं
तू मिल जाएगा तो इंसान-ए-कामिल हो ही जाऊँगा

मिरी मज़लूमियत की रौशनी हर-सू बिखरने दे
सर-ए-मक़्तल मैं पेश-ए-तेग़-ए-क़ातिल हो ही जाऊँगा

ज़रा सा ठहर जाएँ बे-ख़ुदी की मुज़्तरिब मौजें
ऐ दश्त-ए-ग़म मैं इक ख़ामोश साहिल हो ही जाऊँगा

पयम्बर दर्द का बन के तू गर दुनिया में आएगा
सहीफ़ा बन के अश्कों का मैं नाज़िल हो ही जाऊँगा

कहा उस ने क़रीब आ कर 'नदीम' अशआ'र की सूरत
रग-ए-अफ़्क़ार में तेरी मैं शामिल हो ही जाऊँगा
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Nadeem Sirsivi
जैसे हों लाशें दफ़्न पुराने खंडर की बुनियाद तले
एहसास दबे हैं कितने ही मिरी ना-गुफ़्ता रूदाद तले

वो ज़ात तो एक ही ज़ात है न हर लम्हा जिस को ढूँढता है
मोमिन नूर-ए-ईमान तले काफ़िर संग-ए-इल्हाद तले

इमरोज़-ओ-फ़र्दा करते रहे तुम और यहाँ अहल-ए-हसरत
कितने ही कुचले जाते रहे बार-ए-यौम-ए-मीआ'द तले

कल तक नारा आज़ादी का जिन के होंटों की ज़ीनत था
वो इत्मीनान से बैठे हैं अब ख़ुद दाम-ए-सय्याद तले

कर ज़ुल्म बपा लेकिन तारीख़ का ये सच अपने ज़ेहन में रख
कितने ही ज़ालिम दफ़्न हुए मज़लूमों की फ़रियाद तले

हम ग़र्ब-ज़दा ज़हरीली फ़ज़ा की ज़द में आ ही सकते नहीं
हम करते हैं ता'मीर-ए-तमद्दुन तहज़ीब-ए-अज्दाद तले

वो अक़्ल-गराँ हम इश्क़-गराँ दोनों में तक़ाबुल कैसा 'नदीम'
दोनों ही अज़ल से रहते हैं जब फ़ेहरिस्त-ए-अज़्दाद तले
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Nadeem Sirsivi
बयाज़-ए-कोहना में जिद्दत भरी तहरीर रखनी है
पुरानी नियाम में या'नी नई शमशीर रखनी है

फ़सील-ए-फ़िक्र से गिरता हुआ मिस्रा उठाना है
सिरहाने अब मुझे हर दम किताब-ए-'मीर' रखनी है

मुझे ता-उम्र रंज-ए-क़ैद को महसूस करना है
मुझे ता-उम्र अपने पास ये ज़ंजीर रखनी है

सजाओ ख़्वाब कोई रात की बे-रंग आँखों में
अगर बाक़ी दिलों में ख़्वाहिश-ए-ता'बीर रखनी है

ख़ुदी से बे-ख़ुदी की जंग है गोया मुझे इस पल
मुक़ाबिल अपने ही अपनी कोई तस्वीर रखनी है

हमें अपने लहू से दश्त इक गुलज़ार करना है
हमें ता-हश्र ज़िंदा अज़्मत-ए-तकबीर रखनी है

उसे दुनिया के हर ग़म से मुकम्मल पाक तो कर लो
अगर इस दिल में बुनियाद-ए-ग़म-ए-शब्बीर रखनी है
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Nadeem Sirsivi
सुरूर से अटे हुए ऐ मौसम-ए-विसाल रुक
मिले दरीदा-कल्ब को सुकून-इंदिमाल रुक

ऐ हैरत-ए-गुलाब-रुख़ तू इतना ला-जवाब है
कि कह उठे सवाल से हमारे लब सवाल रुक

तुझे गिला है अब वो लज़्ज़तें रहीं न क़ुर्बतें
मैं डालता हूँ रक़्स-ए-इश्क़ में अभी धमाल रुक

न रास आएगा कोई न दिल को भाएगा कोई
हमारे बिन डसेगा तुझ को उम्र-भर मलाल रुक

पड़ेगा रन अज़िय्यतों का सम्त-ए-शहर-ए-हिज्र रोज़
उधर न जा ठहर ज़रा तू देख मेरा हाल रुक

मैं तेरे हस्ब-ए-इद्दआ' नहीं हूँ वो जो था कभी
वो था भी लौट आएगा ऐ मेरे हम-ख़याल रुक

ग़ज़ल-तराज़ियाँ मिरी निगाह-ए-नाज़ से तिरी
ये कर रही हैं इल्तिजा न जा मिरे ग़ज़ाल रुक

हवास खो चुके हैं सब हुआ 'नदीम' जाँ-बलब
तू अब न मेरे सामने आ हासिल-ए-जमाल रुक
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Nadeem Sirsivi
एक हम ही नहीं तक़दीर के मारे साहब
लोग हैं बख़्त-ज़दा सारे के सारे साहब

मेरा नेज़े पे सजा सर है पयाम-ए-ग़ैरत
कोई नेज़े से मिरा सर न उतारे साहब

मैं भी बचपन में ख़लाओं का सफ़र करता था
खेला करते थे मिरे साथ सितारे साहब

दफ़अ'तन हम ने सिला पाया मुनाजातों का
दफ़अ'तन सामने आए वो हमारे साहब

जानवर में हया इंसाँ से ज़ियादा देखी
उल्टे बहने लगे तहज़ीब के धारे साहब

मुझ में दुनिया रही और मैं भी रहा दुनिया में
मुझ को घेरे रहे हर वक़्त ख़सारे साहब

ताकि दरियाओं की वहशत रहे हावी सब पर
डूब जाता हूँ मैं दरिया के किनारे साहब

इस्तक़ामत का गला घोंट के दम लेते हैं
कितने वहशी हुआ करते हैं सहारे साहब

शुक्रिया आप ने बर्दाश्त तो कर ली ये ग़ज़ल
आप भी जाइए अब हम भी सिधारे साहब
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Nadeem Sirsivi
मेरे कश्कोल में बस सिक्का-ए-रद है हद है
फिर भी ये दिल मिरा राज़ी-ब-मदद है हद है

ग़म तो हैं बख़्त के बाज़ार में मौजूद बहुत
कासा-ए-जिस्म में दिल एक अदद है हद है

आज के दौर का इंसान अजब है यारब
लब पे तारीफ़ है सीने में हसद है हद है

था मिरी पुश्त पे सूरज तो ये एहसास हुआ
मुझ से ऊँचा तो मिरे साए का क़द है हद है

मुस्तनद मो'तमद-ए-दिल नहीं अब कोई यहाँ
महरम-ए-राज़ भी महरूम-सनद है हद है

मैं तो तस्वीर-जुनूँ बन गया होता लेकिन
मुझ को रोके हुए बस पास-ए-ख़िरद है हद है

रोज़-ए-अव्वल ही में हर हद से गुज़र बैठा और
चीख़ता रह गया हमदम मिरा हद है हद है

कब तलक ख़ाक-बसर भटके भला बाद-ए-सबा
अब तो हर शाख़ पे फूलों की लहद है हद है

रंग-ए-इख़लास भरूँ कैसे मरासिम में 'नदीम'
उस की निय्यत भी मिरी तरह से बद है हद है
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Nadeem Sirsivi
दोबारा मो'जिज़ा हो जाएगा क्या
वो पागल फिर मिरा हो जाएगा क्या

लहू ताज़ा ज़मीं पर थूकने से
जुनूँ का हक़ अदा हो जाएगा क्या

ये दिल बैतुश्शरफ़ है हादसों का
ये दिल मस्कन तिरा हो जाएगा क्या

अँधेरी रात का दामन जला कर
चराग़ों का भला हो जाएगा क्या

तिरी आँखों में पल-भर झाँकने से
मोहब्बत का नशा हो जाएगा क्या

जिसे हासिल किया सब कुछ गँवा कर
वो ऐसे ही जुदा हो जाएगा क्या

ज़रूरत जिस के आगे सर झुका दे
बताओ वो ख़ुदा हो जाएगा क्या

क़याफ़ा पारसाई का बना कर
तू सच में पारसा हो जाएगा क्या

अगर मैं फोड़ दूँ सूरज की आँखें
अँधेरा जा-ब-जा हो जाएगा क्या

कई रातें मुसलसल जागने से
तू इक शाइ'र बड़ा हो जाएगा क्या

मिरे इक लम्स की हिद्दत पहन कर
वो पत्थर मोम का हो जाएगा क्या

हमारे बे-बिज़ाअत फ़ासलों से
तअ'ल्लुक़ नारवा हो जाएगा क्या

वो कहते हैं बनी लम्हे में दुनिया
ये सब कुछ बरमला हो जाएगा क्या

हक़ीक़त में तू मेरे सामने है
ये मंज़र ख़्वाब सा हो जाएगा क्या

'नदीम' अब मान जा अशआ'र मत लिख
तो यूँही बावला हो जाएगा क्या
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Nadeem Sirsivi
जब बढ़ा दर्द की मौजों का दबाव साहब
मेरी साँसों की लरज़ने लगी नाव साहब

इस से बढ़ कर नहीं अफ़्सुर्दा-मिज़ाजी का इलाज
दिल अगर रोए तो औरों को हँसाओ साहब

घुप अँधेरे में उगाता हूँ सुख़न का सूरज
बे-सबब थोड़ी है रातों से लगाव साहब

जब नहीं मिलती नए ज़ख़्म की सौग़ात मुझे
छील देता हूँ पुराना कोई घाव साहब

जिस की दानाई ने मंसूख़ किए होश-ओ-हवास
ऐसे नादान पे पत्थर न उठाओ साहब

मैं ने उस हुस्न-ए-मुजस्सम की ज़ियारत की है
मेरी आँखों के ज़रा दाम लगाओ साहब

बिजलियाँ वस्ल की साँसों पे गिराओ साहब
रुख़ से भीगी हुई ज़ुल्फ़ों को हटाओ साहब

जैसे सहराओं में मिलते हैं दो प्यासे दरिया
होंट से होंट कुछ इस तरह मिलाओ साहब

दिल मोहब्बत की सक़ाफ़त का अज़ल से है अमीं
इस शहंशाह को नफ़रत न सिखाओ साहब

जीत कर जश्न मनाना तो हुई आम सी बात
हार कर भी तो कभी जश्न मनाओ साहब

हम नए अहद के सुक़रात हैं इस बार हमें
ज़हर का प्याला नहीं जाम पिलाओ साहब
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Nadeem Sirsivi
इक ज़मीं-दोज़ आसमाँ हूँ मैं
हाँ मिरी जान बे-निशाँ हूँ मैं

मुझ को तौहीद हो चुकी अज़बर
ला-मकाँ का नया मकाँ हूँ मैं

दस्त-ए-क़ुदरत की शाह-कारी का
ख़ुद में आबाद इक जहाँ हूँ मैं

कब से आमादा सज्दा-रेज़ी पर
आब-ओ-गिल ही के दरमियाँ हूँ मैं

मौत से कहिए आए फ़ुर्सत में
अभी मसरूफ़-ए-इम्तिहाँ हूँ मैं

किस तरह से बने ज़ियादा बात
ज़र्रा-ए-कुन हूँ कम-ज़बाँ हूँ मैं

लौ से बहती हुई ज़िया हो तुम
लौ से उठता हुआ धुआँ हूँ मैं

जैसे तू मेरा राज़-ए-पिन्हाँ है
ऐसे ही तेरा राज़-दाँ हूँ मैं

जिस से लर्ज़ां है पत्थरों का वजूद
आईना-ज़ाद वो फ़ुग़ाँ हूँ मैं

मौत तो कब की मर चुकी लेकिन
बज़्म-ए-इम्काँ में जावेदाँ हूँ मैं

तुम तसलसुल नई बहारों का
और उजड़ी हुई ख़िज़ाँ हूँ मैं

तेरी यादों का इस में दोश नहीं
बे-सबब आज नीम-जाँ हूँ मैं
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