कोई सिर ले के बैठा है ज़माने भर का ग़म
किसी के बच्चे भूखे हैं कमाने भर का ग़म
कोई जूझे बनाने को महल सुखमय सभी
किसी को फूस का छप्पर बनाने भर का ग़म
मजूरी खा गई आँखों की बीनाई मिरी
पड़े छाले रहा बच्चे पढ़ाने भर का ग़म
सभी जीवन में आभा डाल दी है ख़ुशियों की
उन्हें मेरे लिए इक लौ जलाने भर का ग़म
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