हमने ख़ुद से भी उल्फ़त नहीं की
बाद उसके मोहब्बत नहीं की
मर गया मुझमें मैं पर किसी ने
उससे कोई शिकायत नहीं की
छोड़ दूँ कैसे मैं आदत उसकी
जिसकी हमनें हिफ़ाज़त नहीं की
ख़ुद न दुश्मन हो जाएँ ख़ुदी के
इसलिए बस बग़ावत नहीं की
मैं हूँ वाक़िफ़ ज़माने से अंकुर
इसलिए कोई चाहत नहीं की
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