Haidar Ali Jafri

Haidar Ali Jafri

@haidar-ali-jafri

Haidar Ali Jafri shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Haidar Ali Jafri's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
इर्तिकाब-ए-जुर्म शर की बात है
और बरी होना हुनर की बात है

इक कहानी है कि सदियों पर मुहीत
सोचने में दोपहर की बात है

आए ठहरे और रवाना हो गए
ज़िंदगी क्या है, सफ़र की बात है

एक शोला सा लपक कर रह गया
ये हयात-ए-मुख़्तसर की बात है

नासेहा गर हो सके मंज़िल पे मिल
ज़िंदगी तो रह-गुज़र की बात है

शादी-ओ-ग़म पर करें क्या तब्सिरा
तेरे मेरे सब के घर की बात है

रास्ते तो हैं मगर मंज़िल नहीं
क्या हमारे राहबर की बात है

अब तो दूकानों पे बिकती है वफ़ा
दोस्तो इफ़रात-ए-ज़र की बात है

बाल-ओ-पर होते तो क्यूँ होते असीर
क़ैद में क्यूँ बाल-ओ-पर की बात है

मुतमइन कोई नहीं हालात से
शाम के लब पर सहर की बात है

हर क़वी को है वहाँ जाने का हक़
दश्त की और बहर-ओ-बर की बात है

मुर्दनी ज़ाइल हो या बाक़ी रहे
ये तिरे हुस्न-ए-नज़र की बात है
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Haidar Ali Jafri
न सर छुपाने को घर था न आब-ओ-दाना था
ज़माने भर की निगाहों का मैं निशाना था

भुला न पाया उसे जिस को भूल जाना था
वफ़ाओं से मिरा रिश्ता बहुत पुराना था

जो अक्स-ए-ग़ैर की ताबिश में ढूँडता था जिला
उस आईने को बिखरना था टूट जाना था

दरीचे माज़ी के खुलने लगे तो याद आया
यहीं कहीं किसी डाली पे आशियाना था

सिले में क्या मुझे मिलता जो और रुक जाता
तिरे ख़ुतूत को इक रोज़ तो जलाना था

जहाँ पे ताइर-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न के पर सिलते
वहीं पे अक़्ल-ओ-ख़िरद का नया ठिकाना था

लहू का रंग चटानों के आबशारों में
उन्हें नशेब में दरिया-ए-ख़ूँ बहाना था

क़बा-ए-सुर्ख़ सियह बादलों ने ओढ़ी थी
किसी के जुर्म से पर्दा उन्हें उठाना था

वो एक हल्के तबस्सुम की काट सह न सका
सितम का वार भी किस दर्जा बुज़दिलाना था

तमाम शोरिशें सफ़्फ़ाकियाँ उरूज पे थीं
बिल-आख़िर उन को अदालत से छूट जाना था

दुकाँ लगाए हूँ टूटे हुए खिलौने की
कि भूलता नहीं बचपन भी क्या ज़माना था
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Haidar Ali Jafri
होता फ़नकार-ए-जदीद और न शाएर होता
लग़व बे-बहर ख़यालात का मज़हर होता

और बढ़ जाती जो इबहाम की नुदरत मुझ में
अहद-ए-नौ के किसी फ़िरक़े का पयम्बर होता

कुछ तो मिलता मुझे दुश्नाम-तराज़ी ही सही
ख़ूब होता जो मैं दुश्मन के बराबर होता

काहे को दश्त में चुभने के लिए रह जाता
फूल होता किसी गुलशन का गुल-ए-तर होता

मुझ पे भी तेशा-ए-उल्फ़त की इनायत होती
काश के मैं भी किसी कोह का पत्थर होता

यूँ तराशे हैं सनम कुफ़्र के इस दुनिया ने
बुत-शिकन होता जो इस दौर में 'आज़र' होता

खींच देता मैं ज़माने पे मोहब्बत के नुक़ूश
मेरे क़ब्ज़े में अगर ख़ामा-ए-शहपर होता

अपनी ख़लीक़ का मफ़्हूम समझ पाता अगर
दायरा होता जहाँ और मैं मेहवर होता

लोग मुझ को भी शहीद-ए-ग़म-ए-दौराँ कहते
नेज़ा-ए-वक़्त पे गोया जो मिरा सर होता

दश्त की आब-ओ-हवा ने दिया काँटों का लिबास
मैं बहारों में जो पलता गुल-ए-अह्मर होता

ख़ून मज़दूर का मिलता जो न तामीरों में
न हवेली न महल और न कोई घर होता

तिश्ना-लब कोई भी दुनिया में नहीं रह पाता
मेरी आँखों के जो क़ब्ज़े में समुंदर होता
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Haidar Ali Jafri
अस्र-ए-जदीद आया बड़ी धूम-धाम से
लेकिन शिकस्त खा गया पिछले निज़ाम से

करता है कोई तर्क-ए-तअल्लुक़ भी इस तरह
महरूम हो गया हूँ पयाम-ओ-सलाम से

ज़रदार के सलाम में सब्क़त सभी की है
महरूम मुफ़्लिसी है जवाब-ए-सलाम से

किस की सदा फ़ज़ाओं में गूँजी है चार-सू
किस ने मुझे पुकारा है बचपन के नाम से

बेचैनियों में रात गुज़रती है इस तरह
आसेब कोई घेर ले जैसे कि शाम से

अब बा-शुऊर लोग भी ये सोचने लगे
रखना है हम को काम फ़क़त अपने काम से

सफ़्फ़ाकियाँ बढ़ीं तो दरिंदा-सिफ़त बना
इंसान गिरा है आदमिय्यत के मक़ाम से

बारिश नहीं हुई तो मुझे फ़ाएदा हुआ
महफ़ूज़ है मकान मिरा इंहिदाम से

हल्की हँसी ने फ़िक्र को ज़ौ-बार कर दिया
फूटी किरन कि तरह लब-ए-तश्ना-काम से

ये तो है फ़ज़्ल-ए-रब कि तरन्नुम हुआ नसीब
लेकिन बयाज़ ख़ाली है ख़ुद के कलाम से
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Haidar Ali Jafri
मता-ए-दर्द का ख़ूगर मिरी तलाश में है
किसी का भेजा पयम्बर मिरी तलाश में है

हूँ मैं ही नुक़्ता-ए-आग़ाज़ इख़्तिताम-ए-हिसार
हर इक हिसार का मेहवर मिरी तलाश में है

मिली है औज ख़ुदी को यक़ीन-ए-मोहकम से
सुना है मर्ज़ी-ए-दावर मिरी तलाश में है

वो एक सई जिसे कहते हैं हम सभी इदराक
वो मेरे जिस्म के अंदर मिरी तलाश में है

सभी तो दोस्त हैं क्यूँ शक अबस हुआ मुझ को
किसी के हाथ का पत्थर मिरी तलाश में है

मिरे ख़ुदा मैं हूँ तुझ से पनाह का तालिब
मिरे गुनाहों का लश्कर मिरी तलाश में है

मिरे ही लम्स से ग़ुंचों ने पाई शादाबी
चमन में खिलता गुल-ए-तर मिरी तलाश में है

कहीं से सुन लिया है मेरी प्यास का चर्चा
तभी से प्यासा समुंदर मिरी तलाश में है

लगा है सोचने अहद-ए-रवाँ का 'मरहब' भी
बचूँगा किस तरह 'हैदर' मिरी तलाश में है
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Haidar Ali Jafri