Agha Hajju Sharaf

Agha Hajju Sharaf

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Agha Hajju Sharaf shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Agha Hajju Sharaf's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की
जो गोरिस्ताँ में हसरत है गरेबाँ-गीर मिट्टी की

नवाज़ी सरफ़राज़ी रूह ने तस्वीर मिट्टी की
ख़ुशा-ताले ख़ुशा-क़िस्मत ख़ुशा-तक़दीर मिट्टी की

हक़ीक़त में अजाइब-शोबदा-पर्दाज़-ए-दुनिया है
कि जो इंसान की सूरत था वो है तस्वीर मिट्टी की

जिसे रूया में देखा था मिलाया ख़ाक में उस ने
मुक़द्दर ने हमारे ख़्वाब की ताबीर मिट्टी की

मज़ारों में दिखा कर उस्तुख़्वाँ हसरत ये कहती है
कोई पुरसाँ नहीं उन का ये है तौक़ीर मिट्टी की

ये नाहक़ बरहमी है ख़ाकसारों के ग़ुबारों से
ख़राबी आँधियों ने की है बे-तक़सीर मिट्टी की

वो वहशी था कि मर के भी न मैदान-ए-जुनूँ छूटा
मिरी मय्यत रही सहरा में दामन-गीर मिट्टी की

न ली तुर्बत को गुलशन में जगह ली भी तो सहरा में
रियाज़त सब हमारी तू ने ऐ तक़दीर मिट्टी की

मिरे सय्याद ने जिस जिस जगह तूदा बनाया था
वहाँ जा जा के बू लेते फिरे नख़चीर मिट्टी की

अज़ल के रोज़ से ग़श हैं जो इंसाँ ख़ाकसारी पर
सरिश्त उन की है मिट्टी से ये है तासीर मिट्टी की

ये आलम हो गया है जमते जमते गर्द-ए-सहराई
कि मजनूँ पूछता है क्या ये है ज़ंजीर मिट्टी की

हमारे ख़ाक के तूदे को नाबूद आ के कर देंगे
निशानी भी न छोड़ेंगे तुम्हारे तीर मिट्टी की

इजाज़त से तुम्हारी गुफ़्तुगू की संग-रेज़ो ने
बराबर सुनने वालों ने सुनी तक़रीर मिट्टी की

गली में यार की ऐसे हुए हो गर्द-आलूदा
कि बिल्कुल हो गए हो ऐ 'शरफ़' तस्वीर मिट्टी की
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Agha Hajju Sharaf
आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया
गुलचीं नहीं सींचेंगे गुलज़ार जो मैं रोया

बरसेगा जो अब्र आ कर खुल जाएगा दम भर में
आँसू नहीं थमने के ऐ यार जो मैं रोया

रोओगे झरोके में तुम हिचकियाँ ले ले कर
ऐ यार कभी ज़ेर-ए-दीवार जो मैं रोया

ज़ख़्मी हूँ तो होने दो क्यूँ यार बिसोरूँ मैं
क्या बात रही खा कर तलवार जो मैं रोया

हूँ मुस्तइद-ए-रिक़्क़त फ़रहाद मुझे बहला
ले डूबेंगे तुझ को भी कोहसार जो मैं रोया

मजनूँ ने कहा जाओ वहशत उन्हें दिखलाओ
बैठा हुआ सहरा में बे-कार जो मैं रोया

रहम आ ही गया उन को कटवा दे मिरी बेड़ी
ज़िंदान में चिल्ला कर इक बार जो मैं रोया

की ग़ुस्से के मारे फिर उस ने न निगह सीधी
इन अँखड़ियों का हो कर बीमार जो मैं रोया

बेताबी ओ ज़ारी पर मेरी उन्हें रहम आया
दिखला ही दिया मुझ को दीदार जो मैं रोया

आराम वो करते हैं रुलवा न मुझे ऐ दिल
ठहरेंगे न वो हो कर बेदार जो मैं रोया

आए थे ब-मुश्किल वो लाए थे 'शरफ़' उन को
फिर उठ गए वो हो कर बेदार जो मैं रोया
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Agha Hajju Sharaf
किस के हाथों बिक गया किस के ख़रीदारों में हूँ
क्या है क्यूँ मशहूर मैं सौदाई बाज़ारों में हूँ

ग़म नहीं जो बेड़ियाँ पहने गिरफ़्तारों में हूँ
नाज़ है इस पर कि तेरे नाज़-बरदारों में हूँ

तेरे कूचे में जो मेरा ख़ून हो ऐ लाला-रू
सुर्ख़-रू यारों में हूँ गुल-रंग गुलज़ारों में हूँ

इस क़दर है ऐ परी-रू ज़ोर पर जोश-ए-जुनूँ
सर से तोड़ूँ क़ैद अगर लोहे की दीवारों में हूँ

इश्क़ से मतलब न था दिल ज़ुल्फ़ में उलझा न था
था जब आज़ादों में था अब तो गिरफ़्तारों में हूँ

होगी माशूक़ों को ख़्वाहिश मुझ नहीफ़-ओ-ज़ार की
गुल करेंगे आरज़ू मेरी मैं उन ख़ारों में हूँ

दिल को धमकाना है ध्यान उस नर्गिस-ए-बीमार का
जान ले कर छोड़ता हूँ मैं उन आज़ारों में हूँ

उस मिरे सौदे का दुनिया में ठिकाना है कहीं
जान का गाहक जो है उस के ख़रीदारों में हूँ

किस से पूछूँ क्या करूँ सय्याद की मर्ज़ी की बात
ताज़ा वारिद हूँ क़फ़स में तो गिरफ़्तारों में हूँ

आरज़ू है मैं वो गुल हो जाऊँ ऐ रश्क-ए-चमन
बाग़ में दिन भर रहूँ शब को तिरे हारों में हूँ

आ गया दम ज़ीक़ में लेकिन न ये साबित हुआ
कौन है ईसा मिरा मैं किस के बीमारों में हूँ

डरिए ऐसी आँख से जो साफ़ इशारे से कहे
नर्गिस-ए-बीमार हूँ पर मर्दुम-आज़ारों में हूँ

दिल तो मैं सदक़ा करूँ तुम उस पे मेरी जान लो
तुम ही मुंसिफ़ हो कि मैं ऐसे गुनहगारों में हूँ

कौन हूँ क्या हूँ कहाँ हूँ मैं नहीं ये भी ख़बर
ख़ुद-ग़लत ख़ुद-रफ़्ता हूँ मैं ख़ाक होशयारों में हूँ

है ये अबरू का इशारा थी जहाँ की ज़ुल-फ़िक़ार
ऐ 'शरफ़' मैं उस सुलह-ख़ानी की तलवारों में हूँ
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Agha Hajju Sharaf
मौसम-ए-गुल में जो घिर घिर के घटाएँ आईं
होश उड़ जाते हैं जिन से वो हवाएँ आईं

चल बसे सू-ए-अदम तुम ने बुलाया जिन को
याद आई तो ग़रीबों की क़ज़ाएँ आईं

रूह ताज़ी हुई तुर्बत में वो ठंडी ठंडी
बाग़-ए-फ़िरदौस की हर सू से हवाएँ आईं

मैं वो दीवाना था जिस के लिए बज़्म-ए-ग़म में
जा-ब-जा बिछने को परियों की रिदाएँ आईं

मुंकिर-ए-ज़ुल्म जो जल्लाद हुए महशर में
ख़ुद गवाही के लिए सब की जफ़ाएँ आईं

मुजरिमों ही को नहीं ज़ुल्म का फ़रमान आया
बे-गुनाहों को भी लिख लिख के सज़ाएँ आईं

उस का दीवाना हूँ समझाती हैं परियाँ मुझ को
सर फिराने को कहाँ से ये बलाएँ आईं

तिरे बंदे हुए की जिन से लगावट तू ने
ऐ परी-रू तुझे क्यूँकर ये अदाएँ आईं

हश्र मौक़ूफ़ किया जोश में रहमत आई
ज़ार नाले की जो हर सू से सदाएँ आईं

लश्कर-ए-गुल जो गुलिस्ताँ में ख़िज़ाँ पर उमडा
साथ देने को पहाड़ों से घटाएँ आईं

मेरी तुर्बत पे कभी धूप न आने पाए
शाम तक सुब्ह से घिर घिर के घटाएँ आईं

मुँह छुपाने लगे मा'शूक़ जवाँ हो हो कर
नेक-ओ-बद की समझ आई तो हयाएँ आईं

ख़ाक उड़ाने जो सबा आई मिरी तुर्बत पर
सर पटकती हुई रोने को घटाएँ आईं

बख़्श दी उस ने मिरे ब'अद जो पोशाक मिरी
क़ैस ओ फ़रहाद के हिस्सों में क़बाएँ आईं

राहतें समझे हसीनों ने जो ईज़ाएँ दीं
प्यार आया तो पसंद उन की जफ़ाएँ आईं

आ गया रहम उसे दीं सब की मुरादें उस ने
आजिज़ों की जो सिफ़ारिश को दुआएँ आईं

मेरे सहरा की ज़ियारत को हज़ारों परियाँ
रोज़ ले ले के सुलैमान को रज़ाएँ आईं

ऐ 'शरफ़' हुस्न-परस्तों को बुला के लूटा
इन हसीनों के दिलों में जो दग़ाएँ आईं
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Agha Hajju Sharaf
इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए
नाग़ुफ़्तनी है हाल मिरा कुछ न पूछिए

क्या दर्द-ए-इश्क़ का है मज़ा कुछ न पूछिए
कहता है दिल किसी से दवा कुछ न पूछिए

महशर के दग़दग़े का मैं अहवाल क्या कहूँ
हंगामा जो हुआ सो हुआ कुछ न पूछिए

जब पूछिए तो पूछिए क्या गुज़री इश्क़ में
हम से तो और उस के सिवा कुछ न पूछिए

क्या क्या ये सब्ज़ बाग़ दिखाती है नज़'अ में
दम दे रही है जो जो क़ज़ा कुछ न पूछिए

पूछा जो हम ने गोर-ए-ग़रीबाँ का जा के हाल
आई ये तुर्बतों से सदा कुछ न पूछिए

क़िस्मत से पाइए जो कभी उस को ख़ुश-मिज़ाज
क्या कुछ न कहिए यार से क्या कुछ न पूछिए

रगड़ी हैं एड़ियाँ तो हुई है ये मुस्तजाब
किस आजिज़ी से की है दुआ कुछ न पूछिए

छोड़ा जो मुर्दा जान के सय्याद ने मुझे
क्यूँकर उड़ा मैं हो के रिहा कुछ न पूछिए

तरसा किया मैं दौलत-ए-दीदार के लिए
क़िस्मत ने जो सुलूक किया कुछ न पूछिए

उल्फ़त का नाम ले के नज़र-बंद हो गए
पाई जो प्यार कर के सज़ा कुछ न पूछिए

क्या सरगुज़िश्त गोर-ए-ग़रीबाँ की मैं कहूँ
अहवाल-ए-बंदगान-ए-ख़ुदा कुछ न पूछिए

ख़ुशबू ने आप की जो सर-अफ़राज़ उसे किया
किस नाज़ से चली है सबा कुछ न पूछिए

पूछा 'शरफ़' के मरने का उन से जो वाक़िआ
आँखों में अश्क भर के कहा कुछ न पूछिए
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Agha Hajju Sharaf
पाया तिरे कुश्तों ने जो मैदान-ए-बयाबाँ
शान-ए-चमन-ए-ख़ुल्द हुई शान-ए-बयाबाँ

दीवाना तिरा मर के हुआ ज़िंदा-ए-जावेद
रूह उस की जो निकली तो हुई जान-ए-बयाबाँ

मुझ सा भी जहाँ में कोई सौदाई न होगा
समझा लहद-ए-क़ैस को ऐवान-ए-बयाबाँ

वीराना-नशीनी है अज़ल से मिरी जागीर
क़िस्मत ने दिया है मुझे फ़रमान-ए-बयाबाँ

वहशत पे मिरी आहूओं के बहते हैं आँसू
हैरत पे मिरी रोते हैं हैवान-ए-बयाबाँ

है आलम-ए-हू तुर्बत-ए-मजनूँ का मुजावर
सन्नाटे का आलम है निगहबान-ए-बयाबाँ

जिस रोज़ मिरे होश के हम-राह उड़ेंगे
दम तोड़ के मर जाएँगे मुर्ग़ान-ए-बयाबाँ

इक दिन ही ये मौक़ूफ़ हुआ ख़ाक का उड़ना
क्या क्या न किया क़ैस ने सामान-ए-बयाबाँ

पर्वा न थी बस्ती की न थी याद वतन की
अल्लाह रे मद-होशी-ओ-निस्यान-ए-बयाबाँ

रहते हैं मिरे गिर्द परी-ज़ाद हज़ारों
हूँ आलम-ए-वहशत में सुलेमान-ए-बयाबाँ

लैला पे जो आलम है तो मजनूँ भी है ख़ुश-रू
वो हूर-ए-बयाबाँ है वो ग़िलमान-ए-बयाबाँ

इस तबक़े की मंज़ूर जो की तुम ने तबाही
बर्बादी हुई दस्त-ओ-गरेबान-ए-बयाबाँ

अफ़सोस है इस नज्द को मजनूँ ने बसाया
लैला जिसे कहती है बयाबान-ए-बयाबाँ

दिल खोल के जी चाहता है ख़ाक उड़ाऊँ
फिरने को मिला है मुझे मैदान-ए-बयाबाँ

जिस दिन से बनी है तिरे दीवाने की तुर्बत
होते हैं परी-ज़ाद भी क़ुर्बान-ए-बयाबाँ

शेरों के हिला डाले हैं दिल उस के जुनूँ ने
मजनूँ है कि है रुस्तम-ए-दस्तान-ए-बयाबाँ

जिस वक़्त 'शरफ़' लैला ओ मजनूँ ने क़ज़ा की
इक ग़ुल हुआ रुख़्सत हुए मेहमान-ए-बयाबाँ
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Agha Hajju Sharaf
तीर-ए-नज़र से छिद के दिल-अफ़गार ही रहा
नासूर उस में सूरत-ए-सोफ़ार ही रहा

दुनिया से है निराली अदालत हसीनों की
फ़रियाद जिस ने की वो गुनहगार ही रहा

सौदाइयों की भीड़ कोई दम न कम हुई
हर वक़्त घर में यार के बाज़ार ही रहा

नर्गिस जो उस मसीह की नज़रों से गिर गई
अच्छे न फिर हुए उसे आज़ार ही रहा

गुलज़ार में हमेशा किए हम ने चहचहे
सय्याद ओ बाग़बाँ को सदा ख़ार ही रहा

आई न देखने में भी तस्वीर यार की
आईना दरमियान में दीवार ही रहा

सुरमे से तूर के भी न कुछ फ़ाएदा हुआ
आँखों को इंतिज़ार का आज़ार ही रहा

मजनूँ ने मेरा दाग़-ए-जिगर सर पे रख लिया
ये गुल वो है जो तुर्रा-ए-दस्तार ही रहा

कुछ भी न मुफसिदों की दरअंदाज़ियाँ चलीं
इक उन्स मुझ से उन से जो था प्यार ही रहा

बोले वो मेरी क़ब्र झरोके से झाँक कर
ये शख़्स मर के भी पस-ए-दीवार ही रहा

मुमकिन न फिर हुई क़फ़स-ए-गोर से नजात
जो इस में फँस गया वो गिरफ़्तार ही रहा

आलम में हुस्न-ओ-इश्क़ का अफ़्साना रह गया
यूसुफ़ ही रह गए न ख़रीदार ही रहा

सय्याद को कभी न मुसीबत ने दी नजात
बुलबुल के सब्र में ये गिरफ़्तार ही रहा

क्या जाने उस ग़रीब को किस की नज़र हुई
उन अँखड़ियों का शेफ़्ता बीमार ही रहा

तू रह गया फ़क़त तिरे सौदाई रह गए
यूसुफ़ रहे न मिस्र का बाज़ार ही रहा

राहत किसी हसीं से भी पाई न ऐ 'शरफ़'
चाहा जिसे वो दर-पए-आज़ार ही रहा
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Agha Hajju Sharaf
तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ
लैला के ना-पसंद हो महमिल तो क्या करूँ

ठहरे न ख़ूँ-बहा सू-ए-क़ातिल तो क्या करूँ
हक़ हो जो ख़ुद-बख़ुद मिरा बातिल तो क्या करूँ

इक रंग को जहाँ में नहीं कोई मानता
हर रंग में रहूँ न मैं शामिल तो या करूँ

पिसवाऊँ बे-गुनाह जो दिल को हिना के साथ
पुर्सान-ए-हाल हो कोई आदिल तो क्या करूँ

परवाना होने की भी इजाज़त नहीं मुझे
आलम-फ़रेब है तिरी महफ़िल तो क्या करूँ

जाता गुलू-बुरीदा भी उड़ कर गुलों के पास
बाज़ू गया है तोड़ के बिस्मिल तो क्या करूँ

लैला ये कह के जल्वा दिखाती है क़ैस को
उड़ने लगे जो पर्दा-ए-महमिल तो क्या करूँ

ख़ुद चाहता हूँ ज़ब्त करूँ दर्द-ए-शौक़ मैं
दिल ही मिरा न हो मुतहम्मिल तो क्या करूँ

मुँह चूम लूँ कि गिर्द फिरूँ दौड़ दौड़ के
ऐ दिल जो हाथ रोक ले क़ातिल तो क्या करूँ

दम राह-ए-शौक़-ओ-ज़ौक़ में लेता नहीं कहीं
इस पर भी तय न हो जो ये मंज़िल तो क्या करूँ

क्यूँ-कर न जब्र दिल पे करूँ अपने इख़्तियार
राहत में आ पड़े कोई मुश्किल तो क्या करूँ

इक इक से पूछते हैं वो आईना देख कर
माशूक़ पाऊँ प्यार के क़ाबिल तो क्या करूँ

दे दूँ मैं राह-ए-इश्क़ में जान उस के नाम पर
नाचार हूँ न हो कोई साइल तो क्या करूँ

टाँके जिगर के ज़ख़्म में क्यूँकर लगाने दूँ
गुल तेरे बाग़ का हो मुक़ाबिल तो क्या करूँ

आने को मना करते हो अच्छा न आऊँगा
ये तो कहो न माने मिरा दिल तो क्या करूँ

शायद मुझे जमाल दिखा दे वो ऐ कलीम
नज़्ज़ारे का न हूँ मुतहम्मिल तो क्या करूँ

मर जाऊँ डूब कर 'शरफ़' उस पार यार है
कश्ती न हो कोई लब-ए-साहिल तो क्या करूँ
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Agha Hajju Sharaf
दरपेश अजल है गंज-ए-शहीदाँ ख़रिदिए
तुर्बत के वास्ते चमनिस्ताँ ख़रिदिए

सौदा पुकारता है ये फ़स्ल-ए-बहार में
गुलशन न मोल लीजिए ज़िंदाँ ख़रिदिए

बाज़ार में ये करती हैं ग़ुल मेरी बेड़ियाँ
सोहन हमारे काटने को याँ ख़रिदिए

रफ़्त-ओ-गुज़श्त भी हुआ वहशत का वलवला
सोज़न बराए-चाक-ए-गरेबाँ ख़रिदिए

ले लीजिए मिरा दिल-ए-सद-चाक मुफ़्त है
शाना बराए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ ख़रिदिए

बाज़ार-ए-मुस्तफ़ा है ख़रीदार है ख़ुदा
ख़ुद बिकए याँ न कुछ किसी उनवाँ ख़रिदिए

जिस वक़्त जा निकलते हैं बाज़ार-ए-हुसन में
हिम्मत ये कहती है कि परिस्ताँ ख़रिदिए

हुल्ला कोई मँगाइए जाँ दी है आप पर
ख़िलअत हमारे वास्ते ऐ जाँ ख़रिदिए

तुर्बत पे मेरी होगी तकल्लुफ़ की रौशनी
काफ़ूर बहर-ए-शम्-ए-शबिस्ताँ ख़रिदिए

करते हैं शोर गंज-ए-शहीदाँ में गुल-फ़रोश
चादर बराए-गोर-ए-ग़रीबाँ ख़रिदिए

वहशत में मुश्क की न रसद मुफ़्त लीजिए
सौदा है बू-ए-काकुल-ए-पेचाँ ख़रिदिए

होता है शौक़-ए-इश्क़ में रह रह के वलवला
मजनूँ से दाग़-ए-दिल सर-ए-मैदाँ ख़रिदिए

हर-सू अमल जुनूँ के क़लम-रौ में चाहिए
ढुंडवा के एक एक बयाबाँ ख़रिदिए

होते हैं जज़्ब-ए-इश्क़ से परियों के जमघटे
इक मुल्क मिस्ल-ए-मुल्क-ए-सुलैमाँ ख़रिदिए

चौरंग खेलने में हरीफ़ों के ऐ 'शरफ़'
बचिए तो तेग़-ए-रुस्तम-ए-दसताँ ख़रिदिए
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Agha Hajju Sharaf
सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं
इम्कान-ए-नुमूद-ए-सुब्ह नहीं उम्मीद-ए-चराग़-ए-शाम नहीं

दिल नामे के शक ले पुर्ज़े किया ऐ वाए नसीबे का ये लिखा
पेशानी पर उन की मोहर नहीं सर-नामे पे मेरा नाम नहीं

जाते हैं जो उजड़े ज़िंदा चमन इस बाग़-ए-जहाँ की वज्ह ये है
गुलज़ार ये जिस गुलफ़म का है उस बाग़ में वो गुलफ़म नहीं

बिछ जाएँगे बुलबुल आ के हज़ारों टूट पड़ेंगे जअल ये है
सय्याद गुलाबी पहने है कपड़े चादर-ए-गुल है दाम नहीं

इस नज्द में ख़ौफ़ ऐ लैला न कर उस ग़म-ज़दा की ले जा के ख़बर
मजनूँ से तिरा वहशी है तिरा बे-चारा कोई ज़िरग़ाम नहीं

आगाह किया है दिल को हमारे किस ने तुम्हारी ख़ूबियों से
इंसाफ़ करो मुंसिफ़ हो तुम्हीं फिर क्या है जो ये इल्हाम नहीं

दिल देते ही उन को घुलने लगे नज़रों में अजल के तुलने लगे
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से ये खुला चाहत का ब-ख़ैर अंजाम नहीं

आलम है अजब गीती-ए-अदम का चार तरफ़ है आलम-ए-हू
आसाइश-ए-जान-ओ-रूह नहीं राहत का कोई हंगाम नहीं

जाना है अदम की राह हमें होना है फ़ना-फ़िल्लाह हमें
लेते हैं यहाँ दम चंद नफ़स हस्ती से हमें कुछ काम नहीं

फिर आँख कभी खुलने की नहीं नींद आएगी इक दिन ऐसी हमें
होना है यही सोचे हैं जो हम ये ख़्वाब-ओ-ख़याल-ए-ख़ाम नहीं

चौरंग नहीं क्यूँ खेलते अब किस कुश्ते पे रहम आया है तुम्हें
ख़ूँ-रेज़ियों का क्यूँ शौक़ नहीं क्यूँ ज़ेब-ए-कमर समसाम नहीं

अक़्लीम-ए-ख़मोशाँ से तो सदा इक ग़म-ज़दा आती है ये सदा
हैं सैकड़ों शाहंशाह यहाँ पर हुक्म नहीं अहकाम नहीं

दुनिया में जो था ताबे था जहाँ मालूम नहीं पहुँचा वो कहाँ
इबरत का महल कहते हैं इसे अब गोर में भी बहराम नहीं

बुलबुल की फ़ुग़ाँ पर ख़ंदा-ज़नी ग़ुंचों ने जो की पज़मुर्दा हुए
सच है कि हज़ीन-ओ-ग़म-ज़दा हो हँसने का ब-ख़ैर अंजाम नहीं

दीदार के भूके तेरे जो हैं है ख़त्म उन्हीं पर नफ़स-कुशी
कुछ ख़्वाहिश-ओ-फ़िक्र-ए-फ़ौत नहीं दुनिया के मज़े से काम नहीं

तुम क़ब्र में क्यूँ उठ बैठे 'शरफ़' आराम करो आराम करो
यारान-ए-वतन रोते हैं तुम्हें कुछ हश्र नहीं कोहराम नहीं
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Agha Hajju Sharaf
जवानी आई मुराद पर जब उमंग जाती रही बशर की
नसीब होते ही चौदहवीं शब शिकोह रुख़्सत हुई क़मर की

वो शोख़ चितवन थी किस सितम की कि जिस ने चश्मक कहीं न कम की
किसी तरफ़ को जो बर्क़ चमकी तो समझे गर्दिश उसे नज़र की

तिरा ही दुनिया में है फ़साना तिरा ही शैदाई है ज़माना
तिरे ही ग़म में हुईं रवाना निकल के रूहें ख़ुदाई भर की

न आसमाँ है न वो ज़मीं है मकाँ नहीं वो जहाँ मकीं है
पयम्बरों का गुज़र नहीं है रसाई है मेरे नामा-बर की

खिंचा जो तूल-ए-शब-ए-जुदाई अँधेरी मदफ़न की याद आई
निगाह ओ दिल पर वो यास छाई उमीद जाती रही सहर की

जो इश्क़-बाज़ों को आज़माया लगा के छुरियाँ ये क़हर ढाया
यहाँ यहाँ तक लहू बहाया कि नौबत आई कमर कमर की

गिरे जो कुछ सुर्ख़ गुल ज़मीं पर कहा ये बुलबुल ने ख़ाक उड़ा कर
हुआ है वा'दा मिरा बराबर ये सूरतें हैं मिरे जिगर की

मक़ाम-ए-इबरत है आह ऐ दिल ख़ुदा ही की है पनाह ऐ दिल
नहीं है कुछ ज़ाद-ए-राह ऐ दिल अदम से ताकीद है सफ़र की

ये हम ने कैसा सफ़र किया है मुसाफ़िरों को रुला दिया है
अजल ने आग़ोश में लिया है ख़बर भी हम को नहीं सफ़र की

वो जल्द या-रब इन्हीं को ताके लगा दे दो तीर इन पर आ के
ये दोनों रह जाएँ फड़फड़ा के मैं देखूँ लाशें दिल ओ जिगर की

किसी का माशूक़ छूटता है सहर का वक़्त उस को लूटता है
कोई ये सीने को कूटता है नहीं है आवाज़ ये गजर की

खिचा है ज़रतार शामियाना गुलों से आती है बू शहाना
दिखा के क़ुदरत का कारख़ाना लहद ने हसरत भुला दी घर की

ग़शी का आलम वो ज़ोर पर है मिज़ाज-ए-सेहहत से बे-ख़बर है
दवा का ग़फ़लत-ज़दा असर है ख़बर दवा को नहीं असर की

शबाब ने ख़ुद-नुमा बनाया ये नाज़-ए-ख़ूशरुई ने जताया
हया में जिस वक़्त फ़र्क़ आया तो उन के मुखड़े से ज़ुल्फ़ सरकी

हुआ हूँ चौरंग तेग़-ए-हसरत कि दफ़्न की है मिरी ये सूरत
किसी तरफ़ को है दिल की तुर्बत कहीं है तुर्बत मिरे जिगर की

जो उस ने ज़िद की तो आफ़त आई दुहाई देने लगी ख़ुदाई
क़यामत उस बेवफ़ा ने ढाई इधर की दुनिया 'शरफ़' उधर की
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Agha Hajju Sharaf
इलाही ख़ैर जो शर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं
तअम्मुल इस में अगर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

कुछ उन घर से नहीं कम हमारा ख़ाना-ए-दिल
जो आदमी का गुज़र वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

वो जान लेते हैं हम उन पे जान देते हैं
नसीहतों का असर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

मरे मिटेंगे हम ऐ दिल यही जो चश्मक है
सफ़ाई मद्द-ए-नज़र वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

करेगा नाज़ तड़पने में हम से क्या बिस्मिल
कमी-ए-दर्द-ए-जिगर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

वो तेग़-ज़न हैं तो हम भी जिगर पे रोकेंगे
जो एहतियाज-ए-सिपर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

वो बे-ख़बर हैं जहाँ से तो हम हैं ख़ुद-रफ़्ता
ज़माने की जो ख़बर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

ख़जिल हैं गालों से उन के हमारे दाग़ों से
फ़रोग़-ए-शम्स-ओ-क़मर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

तुम आइने में ये किस नाज़नीं से कहते थे
बग़ौर देख कमर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

शब-ए-मज़ार से कुछ कम नहीं है शाम-ए-फ़िराक़
अगर असीर-ए-सहर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

वो गाली देंगे तो बोसा 'शरफ़' मैं ले लूँगा
लिहाज़-ए-पास अगर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं
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Agha Hajju Sharaf
हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़
तिरे मतवाले हैं मशहूर हैं मस्ताना-ए-इश्क़

दुश्मनों में भी रहा रब्त-ए-मोहब्बत बरसों
ख़ुश न आया कसी माशूक़ को याराना-ए-इश्क़

मुझ को जो चाह मोहब्बत की है मजनूँ को कहाँ
उस को लैला ही का सौदा है मैं दीवाना-ए-इश्क़

जान लेंगे कि वो दिल लेंगे जिन्हें चाहा है
देखिए करते हैं क्या आ के वो जुर्माना-ए-इश्क़

जा-ब-जा चाहने वालों का जो मजमा' देखा
कूचा-ए-यार को समझा मैं जिलौ-ख़ाना-ए-इश्क़

साल-हा-साल से ख़ुश-बाश जो हूँ सहरा में
आलम-ए-हू को समझता हूँ मैं वीराना-ए-इश्क़

दिल पिसा चाहता है जा के हिना पर उस की
ख़िर्मन-ए-हुस्न हुआ चाहता है दाना-ए-इश्क़

दिल का है क़स्द तिरी बज़्म में अड़ कर जाऊँ
क्या ही बे-पर की उड़ाता है ये परवाना-ए-इश्क़

हर परी-ज़ाद की है जल्वा-नुमा इक तस्वीर
शीशा-ए-दिल है हमारा कि परी-ख़ाना-ए-इश्क़

दिल मिरा ख़ास मकाँ है जो तिरी उल्फ़त का
कहती है सारी ख़ुदाई इसे काशाना-ए-इश्क़

कौन किस का शब-ए-मेराज में होगा माशूक़
की है किस शोख़ ने ये महफ़िल-ए-शाहाना-ए-इश्क़

तू करे नाज़ तुझे यार ज़माना चाहे
ता-अबद ये रहे आबाद तिरा ख़ाना-ए-इश्क़

उस परी-रू ने जो देखा मिरे दिल को सद-चाक
अपनी ज़ुल्फ़ों में किया नाम-ए-हवा शाना-ए-इश्क़

आलम-ए-नूर तिरी शक्ल का परवाना है
हुस्न की जान है तू और है जानाना-ए-इश्क़

सर-ब-कफ़ गंज-ए-शहीदाँ में चले जाते हैं
इम्तिहाँ से नहीं डरते तिरे फ़रज़ाना-ए-इश्क़

नज़्अ' में सूरा-ए-यूसुफ़ कोई लिल्लाह पढ़े
दम भी निकले तो मरूँ सुन के मैं अफ़्साना-ए-इश्क़

डबडबाईं मिरी आँखें तो वो क्या कहते हैं
देखो लबरेज़ हैं छलकेंगे ये पैमाना-ए-इश्क़

ऐ 'शरफ़' कौन मिरे दिल के मुक़ाबिल होगा
इक यही सारी ख़ुदाई में है मर्दाना-ए-इश्क़
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Agha Hajju Sharaf
परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं
गरेबाँ चाक कर देते हैं बे-दामन बनाते हैं

जुनूँ में जा-ब-जा हम जो लहू रोते हैं सहरा में
गुलों के शौक़ में वीराने को गुलशन बनाते हैं

जिन्हें इश्क़-ए-दिली है वो तुम्हारा नाम जपने को
तहारत से हमारी ख़ाक की मिसरन बनाते हैं

मुरक़्क़ा खींचते हैं जो तिरे गंज-ए-शहीदाँ का
तह-ए-शमशीर हर तस्वीर की गर्दन बनाते हैं

दिया करते हो तुम जिस तरह से बल ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को
मुसाफ़िर के लिए यूँ फाँसियाँ रहज़न बनाते हैं

हसीनान-ए-चमन पर ख़ात्मा है जामा-ज़ेबी का
फटा पड़ता है जोबन जो ये पैराहन बनाते हैं

हमेशा शेफ़्ता रखती है अपनी हुस्न-ए-क़ुदरत का
ख़ुद उस की रूह हो जाते हैं जिस का तन बनाते हैं

इरादा है जो शमशीर-ए-दो-दम के मुँह पे चढ़ने का
तिरे जाँ-बाज़ चार आईना ओ जोशन बनाते हैं

रहा करते हैं वो दिल में फिरा करते हैं नज़रों में
अता करते हैं नूर आँखों को दिल रौशन बनाते हैं

सलाह-ए-इश्क़ दे दे कर किए देते हैं ख़ुद रफ़्ता
तिरे शैदाई दिल से दोस्त को दुश्मन बनाते हैं

कोई चाक-ए-जिगर बुलबुल का गुल-चीनों से पाता है
निखरने को गुल अपने अपने पैराहन बनाने हैं

गुलों के ढेर ला ला के चमन से उस में फूंकेंगे
क़रीब-ए-बोस्ताँ बेदाद-गर गुलख़न बनाते हैं

मदद तयार है नक़्शा इरम का खिंच के आया है
शहीद-ए-नाज़ पर रहम आ गया मदफ़न बनाते हैं

मुरक़्क़ा खींचते हैं बाग़ का जो हुस्न क़ुदरत से
गुल-ए-शादाब का क्या रंग क्या रोग़न बनाते हैं

तअ'ल्लुक़ ज़ेब-ओ-ज़ीनत से नहीं कुछ ख़ाकसारों को
'शरफ़' मिट्टी में रंगते हैं जो पैराहन बनाते हैं
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Agha Hajju Sharaf
तेरे आलम का यार क्या कहना
हर तरफ़ है पुकार क्या कहना

उफ़ न की दर्द-ए-हिज्र ज़ब्त किया
ऐ दिल-ए-बे-क़रार क्या कहना

वादा-ए-वस्ल उन से लूँ क्यूँ-कर
मेरा क्या इख़्तियार क्या कहना

क्या ही नैरंगियाँ दिखाई हैं
मेरे बाग़-ओ-बहार क्या कहना

कैसे आशिक़ हैं उन से जब पूछा
बोले बे-इख़्तियार क्या कहना

मुश्त पर भी गुलों के गर्द रहे
आफ़रीं ऐ हज़ार क्या कहना

तिरछी नज़रें छुरी कटारी हैं
चश्म-ए-बद-दूर यार क्या कहना

गुलशनों में ये रंग-रूप कहा
ला-जवाब ऐ निगार क्या कहना

दम-ए-ईसा को मात करती है
ऐ नसीम-ए-बहार क्या कहना

इम्तिहाँ कर चुके तो वो बोले
ऐ मिरे जाँ-निसार क्या कहना

उस के कूचे में बैठ कर न उठा
वाह मेरे ग़ुबार क्या कहना

जानते हैं कि जान दोगे 'शरफ़'
उस को फिर बार बार क्या कहना
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Agha Hajju Sharaf
दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ
कोई दम में चल बसेंगे ज़िंदगानी अब कहाँ

आप उलटते हैं वो पर्दा वो कहानी अब कहाँ
आशिक़ों से गुफ़्तुगू है लन-तरानी अब कहाँ

जब हमारे पास थे उन को हमारा पास था
थी हमारी क़द्र जब थी क़द्र-दानी अब कहाँ

ऐ परी-पैकर तिरा मेरे ही दम तक था बनाव
सुर्ख़ मूबाफ़ ओ लिबास-ए-ज़ाफ़रानी अब कहाँ

बद-मिज़ाजी नौजवानी ने सिखाई है उन्हें
दुश्मन-ए-जाँ हो गए हैं मेहरबानी अब कहाँ

यार आ निकला था ऐ दिल फिर वो क्यूँ आने लगा
हो गया इक ये भी अम्र-ए-ना-गहानी अब कहाँ

ब'अद मेरे फिर किसी ने भी सुनी आवाज़-ए-यार
थी मुझी तक लन-तरानी लन-तरानी अब कहाँ

बाग़ में नहरें भरी हैं फूल फल का था मज़ा
बंद हैं कुंज-ए-क़फ़स में दाना-पानी अब कहाँ

तेरी और अपनी हक़ीक़त जा के ईसा से कहूँ
इस क़दर ताक़त भला ऐ ना-तवानी अब कहाँ

शेफ़्ता जब तक न थे शोहरत थी ज़ब्त-ओ-सब्र की
दर्द-ए-तन्हाई की ताब ऐ यार-ए-जानी अब कहाँ

दिल में ताक़त थी तड़प लेते थे बिस्मिल की तरह
जान में हालत नहीं वो जाँ-फ़िशानी अब कहाँ

घूर लेते थे जफ़ा-कारों को जब मफ़्तूँ न थे
हो गए चौरंग ख़ुद चंगेज़-ख़ानी अब कहाँ

अपनी क़ुदरत उस ने दिखला दी शब-ए-मेराज में
हो चुकी बस मेहमानी मेहमानी अब कहाँ

लहलहाते थे चमन मफ़्तूँ गुलों पर थे बहार
लुट गई बू-बास ऐ बर्ग-ए-ख़िज़ानी अब कहाँ

हाल-ए-दिल क़हवाते थे जब क़ासिद आते जाते थे
नामा-ए-शौक़ और पैग़ाम-ए-ज़बानी अब कहाँ

दाग़-ए-दिल उस ने दिया था दिल को हम ने खो दिया
ऐ 'शरफ़' उस बे-मुरव्वत की निशानी अब कहाँ
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Agha Hajju Sharaf
रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं
आँखें हैं तर तो हों मिरा दामन तो तर नहीं

उम्मीद-ए-वस्ल से भी तो सदमा न कम हुआ
क्या दर्द जाएगा जो दवा का असर नहीं

दिन को भी दाग़-ए-दिल की न कम होगी रौशनी
ये लौ ही और है ये चराग़-ए-सहर नहीं

तन्हा चलें हैं मारका-ए-इश्क़ झेलने
उन की तरफ़ ख़ुदाई है कोई इधर नहीं

ख़ाली सफ़ाई-क़ल्ब से बेहतर है दाग़-ए-इश्क़
क्या ऐब है कि जिस के मुक़ाबिल हुनर नहीं

क़ातिल की राह देख ले दम भर न ज़हर खा
ऐ दिल क़ज़ा को आने दे बे-मौत मर नहीं

क्यूँकर यहाँ न एक ही करवट पड़ा रहूँ
हू का मक़ाम गोर की मंज़िल है घर नहीं

रन-खन पड़ेंगे जब कहीं दिखलाएगा वो शक्ल
बे-किश्त-ए-ख़ूँ हुई ये मुहिम हो के सर नहीं

आँखें झपक रही हैं मिरी बर्क़-ए-हुस्न से
पेश-ए-नज़र हो तुम मुझे ताब-ए-नज़र नहीं

यारो बताओ किस तरफ़ आँखें बिछाऊँ मैं
उस शोख़ की किधर को है आमद किधर नहीं

बंदा-नवाज़ सब हैं रुकू ओ सुजूद में
ताअत से ग़ाफ़िल आप की कोई बशर नहीं

परियों के पास जाऊँ मैं क्यूँ दिल को बेचने
सौदा जो मोल लूँ ये मुझे दर्द-ए-सर नहीं

दर्द-ए-फ़िराक़-ए-यार से दोनों हैं बे-क़रार
क़ाबू में दिल नहीं मुतहम्मिल जिगर नहीं

राह-ए-अदम में साथ रहेगी तिरी हवस
पर्वा नहीं न हो जो कोई हम-सफ़र नहीं

ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई
वो बंद-ओ-बस्त है कि हवा का गुज़र नहीं

उठवा के अपनी बज़्म से दिल को मिरे न तोड़
पहलू में दे के जा मुझे बर्बाद कर नहीं

हस्ती किधर है आलम-ए-अर्वाह है कहाँ
ग़फ़लत-ज़दा हूँ मुझ को कहीं की ख़बर नहीं

ज़ंजीर उतर गई तिरा दीवाना मर गया
सन्नाटा क़ैद-ख़ाने में है शोर-ओ-शर नहीं

चंद्रा के मुझ को बोले वो आख़िर जो शब हुई
फ़क़ हो गया है रंग किसी का सहर नहीं

बरपा है हश्र-ओ-नश्र जो रफ़्तार-ए-यार से
ये कौन सा चलन है क़यामत अगर नहीं

दुर्र-ए-नजफ़ तो जिस्म है उस नाज़नीन का
मू-ए-नजफ़ में बाल पड़ा है कमर नहीं

दीदार का लगा के मैं आया हूँ आसरा
उम्मीद-वार हूँ मुझे मायूस कर नहीं

यारो सितम हुआ हुई आख़िर शब-ए-विसाल
सीना 'शरफ़' ये कूट रहे हैं गजर नहीं
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Agha Hajju Sharaf
चलते हैं गुलशन-ए-फ़िरदौस में घर लेते हैं
तय ये मंज़िल जो ख़ुदा चाहे तो कर लेते हैं

इश्क़ किस वास्ते करते हैं परी-ज़ादों से
किस लिए जान पर आफ़त ये बशर लेते हैं

देखने भी जो वो जाते हैं किसी घाएल को
इक नमक-दाँ में नमक पीस के भर लेते हैं

ख़ाक उड़ जाती है सुथराव उधर होता है
नीमचा खेंच के वो बाग जिधर लेते हैं

मैं वो बीमार हूँ अल्लाह से जा के ईसा
मिरे नुस्ख़ों के लिए हुक्म-ए-असर लेते हैं

यार ने लूट लिया मुझ वतन-आवारा को
लोग ग़ुर्बत में मुसाफ़िर की ख़बर लेते हैं

इस तरफ़ हैं कि झरोके में उधर बैठे हैं
जाएज़ा कुश्तों का अपने वो किधर लेते हैं

ठीक उस रश्क-ए-चमन को वो क़बा होती है
नाप कर जिस की रग-ए-गुल से कमर लेते हैं

कुछ ठिकाना है परी-ज़ादों की बे-रहमी का
इश्क़-बाज़ों से क़िसास आठ पहर लेते हैं

ये नया ज़ुल्म है ग़ुस्सा जो उन्हें आता है
बे-गुनाहों को भी माख़ूज़ वो कर लेते हैं

शोहरत उस सैद-ए-वफ़ादार की उड़ जाती है
तीर में जिस के लगाने को वो पर लेते हैं

कहते हैं हूरों के दिल में तिरे कुश्तों के बनाव
इस लिए ख़ूँ में नहा कर वो निखर लेते हैं

किस क़दर नामा-ओ-पैग़ाम को तरसाया है
भेजते हैं ख़बर अपनी न ख़बर लेते हैं

दम निकलते हैं कलेजों से लहू जारी है
साँस उल्टी तिरे तफ़तीदा-जिगर लेते हैं

चल खड़े होंगे तो हस्ती मैं न फिर ठहरेंगे
जान-ए-जाँ चंद नफ़स दम ये बशर लेते हैं

है इशारा यही मू-हा-ए-मिज़ा का उन की
हम वो नश्तर हैं कि जो ख़ून-ए-जिगर लेते हैं

सामना करते हैं जिस वक़्त गदा का तेरे
बादशह तख़्त-ए-रवाँ पर से उतर लेते हैं

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ पास हैं रहना होश्यार
लोग रस्ते में 'शरफ़' जेब कतर लेते हैं
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Agha Hajju Sharaf
लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे
गुल-ए-दाग़-ए-तमन्ना लूट लाए जिस का जी चाहे

चराग़-ए-यास-ओ-हसरत हम हैं महफ़िल में हसीनों की
जलाए जिस का जी चाहे बुझाए जिस का जी चाहे

कसी माशूक़ की कोई ख़ता मैं ने नहीं की है
सताने को ज़बर्दस्ती सताए जिस का जी चाहे

ब-हल शौक़-ए-शहादत में किया है हम ने ख़ून अपना
हमारे शौक़ से पुर्ज़े उड़ाए जिस का जी चाहे

दो-आलम में नहीं ऐ यार मुझ सा शेफ़्ता तेरा
मोहब्बत यूँ जताने को जताए जिस का जी चाहे

ख़ुशी ओ ना-ख़ुशी मौक़ूफ़ है अपनी हसीनों पर
हँसाए जिस का जी चाहे रुलाए जिस का जी चाहे

सदाएँ सुर्ख़-रूई देती है गंज-ए-शहीदाँ में
लहू का मेंह बरसता है नहाए जिस का जी चाहे

जो हो जाएगा परवाना चराग़-ए-हुस्न का उस के
करेगा नाम रौशन लौ लगाए जिस का जी चाहे

अजाइब लुत्फ़ हैं कू-ए-तवक्कुल की फ़क़ीरी में
ख़ुदाई है यहाँ धूनी रमाए जिस का जी चाहे

कोई ग़ुंचा न पहुँचेगा तिरे हुस्न-ए-तबस्सुम को
सर-ए-मैदाँ चमन में मुस्कुराए जिस का जी चाहे

जगह उस शम्अ'-रू ने दी है परवानों के लश्कर को
सर-ए-मैदाँ चमन मैं मुस्कुराए जिस का जी चाहे

पशेमाँ ग़ुंचा-ओ-गुल होंगे मेरे ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ से
हँसे जी चाहे जिस का मुस्कुराए जिस का जी चाहे

अता की नहर-ए-गुलशन उस ने अपने इश्क़-बाज़ों को
इजाज़त दी यहाँ निखरे नहाए जिस का जी चाहे

ख़ुशी हो हो के ख़ुद सय्याद कहता है अनादिल से
बहार आई हुई है चहचहाए जिस का जी चाहे

न देखेंगे किसी बेताब को वो आँख उठा के भी
कलेजे को मसोसे तिलमिलाए जिस का जी चाहे

मरेंगे उस पे कलमा पढ़ के उस का जान हम देंगे
ख़ुदाई भर में हम को आज़माए जिस का जी चाहे

अजब ख़ुशबू है गुल-दस्ते में शौक़-ओ-ज़ौक़ के उस की
करेगा वज्द पैराहन बसाए जिस का जी चाहे

दुआ-ए-मग़्फ़िरत तुम दो उतारे क़ब्र में कोई
पढ़ो तल्क़ीन तुम शाना हिलाए जिस का जी चाहे

'शरफ़' दम तोड़ते हैं इक परी-रू की जुदाई में
अजब आलम है उन का देख आए जिस का जी चाहे
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Agha Hajju Sharaf
जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का
आँखों में फिर रहा है मुरक़्क़ा नजात का

मालिक ही के सुख़न में तलव्वुन जो पाइए
कहिए यक़ीन लाइए फिर किस की बात का

दफ़्तर हमारी उम्र का देखोगे जब कभी
फ़ौरन उसे करोगे मुरक़्क़ा नजात का

उल्फ़त में मर मिटे हैं तो पूछे ही जाएँगे
इक रोज़ लुत्फ़ उठाएँगे इस वारदात का

सुर्ख़ी की ख़त्त-ए-शौक़ में हाजत जहाँ हुई
ख़ून-ए-जिगर में नोक डुबोया दवात का

मूजिद जो नूर का है वो मेरा चराग़ है
परवाना हूँ मैं अंजुमन-ए-काएनात का

ऐ शम्-ए-बज़्म-ए-यार वो परवाना कौन था
लौ में तिरी ये दाग़ है जिस की वफ़ात का

मुझ से तो लन-तरानियाँ उस ने कभी न कीं
मूसी जवाब दे न सके जिस की बात का

इस बे-ख़ुदी का देंगे ख़ुदा को वो क्या जवाब
दम भरते हैं जो चंद नफ़स के हुबाब का

क़ुदसी हुए मुतीअ वो ताअत बशर ने की
कुल इख़्तियार हक़ ने दिया काएनात का

ऐसा इताब-नामा तो देखा सुना नहीं
आया है किस के वास्ते सूरा बरात का

ज़ी-रूह मुझ को तू ने किया मुश्त-ए-ख़ाक से
बंदा रहूँगा मैं तिरे इस इल्तिफ़ात का

नाचीज़ हूँ मगर मैं हूँ उन का फ़साना-गो
क़ुरआन हम्द-नामा है जिन की सिफ़ात का

रोया है मेरा दीदा-ए-तर किस शहीद को
मशहूर हो गया है जो चश्मा फ़ुरात का

आए तो आए आलम-ए-अर्वाह से वहाँ
दम भर जहाँ नहीं है भरोसा सबात का

धूम उस के हुस्न की है दो-आलम में ऐ 'शरफ़'
ख़ुर्शीद रोज़ का है वो महताब रात का
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Agha Hajju Sharaf

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