Javed Shaheen

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Javed Shaheen shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Javed Shaheen's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Nazm
इन दिनों मेरे अंदर घमसान का रन पड़ रहा है
अपने ख़िलाफ़ अपना ही दिफ़ाअ कर रहा हूँ
जंग में हर हर्बा जाएज़ होता है

मैं ने एक बहादुर की मानिंद
ओछा हथियार इस्तिमाल न करने का फ़ैसला किया था
लेकिन जूँही मेरे गिर्द हिसार तंग होने लगता है
मेरी ज़िरह-बक्तर के हल्क़े टूटने लगते हैं
और बचाओ के हर रास्ते पर
टिकटिकी दिखाई देती है
तो मैं कोई न कोई ओछा हथियार
इस्तिमाल करने पर मजबूर हो जाता हूँ
किसी सरकश ख़याल के पेट में
चुपके से ख़ंजर उतार देता हूँ
किसी गुस्ताख़ जज़्बे को
मुफ़ाहमत के बहाने बुला कर
दीवार में चुन देता हूँ

मैं जानता हूँ
मेरे दिफ़ाअ में
शिगाफ़ पड़ चुके हैं
लेकिन मेरा इरादा
आख़िर तक डटे रहने का है
फिर तमाम राहें मसदूद पा कर
आख़िरी हर्बा इस्तिमाल करूँगा
अपनी मौत का एलान इस तरह करूँगा
जैसे मैं नहीं
मेरा दुश्मन मरा हो
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धुँद के दरमियान मुअल्लक़ दिनों में
ख़ुश्क लम्हे मेरे अंदर गिरते रहते हैं
और दिल को भर देते हैं
मैं क़दम धरने से डरता हूँ
सोचता हूँ
कहीं कुछ टूट न जाए
और आराम की ख़्वाहिश-मंद हवा
नींद से जाग न जाए

लम्बी फ़राग़तों में
आसमान की ख़ाली नीलाहटों को
गर्द से भरते देखता रहता हूँ
एक जैसे मनाज़िर
फ़रार की ख़्वाहिश में
चारों तरफ़ देखते रहते हैं
चोर रास्ते तलाश करते रहते हैं

शाम होने से पहले ही
सर्दी के तेज़ रेज़े
बदन में उतरने लगते हैं
हवा की ग़ैर-मौजूदगी में
बिखरे हुए ख़ुश्क लम्हों को
ख़ुद ही जमा करता हूँ
उन से आग रौशन करता हूँ
ग़ैर-महफ़ूज़ रातों में जागने के लिए
ज़िंदा रहने के लिए
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शाम होते ही मैं
पसीने में भीगा हुआ बदन
खूँटी से लटका देता हूँ
दिन भर की कमाई देखने के लिए
जेबें टटोलता हूँ तो ख़ाली हाथ
जेबों से बाहर गिर पड़ते हैं
सोचता हूँ
पचास से ऊपर का हो चुका हूँ
मेरा मुस्तक़बिल क्या होगा
आने वाली नस्ल को क्या मुँह दिखाऊँगा
पसीने में भीगा हुआ बदन
धोने से डरता हूँ
कि आने वाले मेरी मेहनत की निशानी माँगेंगे
तो क्या दिखाऊँगा
खूँटी पर लटका हुआ बदन
सारी रात मुझे घूरता रहता है
ख़ाली हाथ
चारपाई के नीचे पड़े रहते हैं
सुब्ह होने पर
बदन खूँटी से उतारता हूँ
हाथ चारपाई के नीचे से उठाता हूँ
दरवाज़ा खोलता हूँ
दिन अपनी पूरी सफ़्फ़ाकी के साथ
एक बार फिर मेरे मुक़ाबिल खड़ा होता है
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बीवी मुझ से कहती है
सारा दिन लेटे रहने
और नज़्में लिखने से
घर कैसे चलेगा
नज़्में रोटियाँ तो नहीं
कि बच्चों का पेट भर सकें
तुम तो अपना पेट
शाएरी की तलवार से काट कर
मुस्तक़बिल की खूँटी से लटका चुके हो
लेकिन हमारे पेट इतने शाइराना नहीं
सोचता हूँ
बीवी ठीक कहती है
नज़्में तो ग़ैब से उतर आती हैं
लेकिन रोटियाँ ग़ैब के तन्नूर में नहीं पकतीं
वैसे भी शाएरी को ज़िंदा रखने के लिए
पेट पर रोटी बाँधनी ज़रूरी है
लेकिन मैं उसे दरख़्वास्त करूँगा
वो मुझे एक नज़्म और लिख लेने दे
आख़िरी नज़्म
जिस में आने वाली कल के लिए
कोई तारीफ़ नहीं होगी
जिस में गुज़र जाने वाली कल के लिए
कोई पछतावा नहीं होगा
जिस में आज के किसी दुख का
मातम नहीं होगा
हर लिहाज़ से मुकम्मल नज़्म
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मैं ने रात से पूछा
''मेरे घर से चोरी हो जाने वाला ख़्वाब
तुम्हारे पास तो नहीं
मेरे हम-साए के बच्चों का ख़्वाब
घरों में बैठी जवाँ लड़कियों के ख़्वाब
शहर से हिजरत कर जाने वाले सारे ख़्वाब
तुम्हारे पास तो नहीं''?
रात मेरी आँखों में झाँक कर बोली
''इतने सारे ख़्वाबों का चोरी हो जाना
और शोर न मचना
इतने सारे ख़्वाबों का क़त्ल हो जाना
और सुराग़ न चलना
इतनी सारी लाशों का दरिया में बहा दिया जाना
और पानी का रंग न बदलना
कैसे मुमकिन है
तुम्हारी मर्ज़ी के बग़ैर
तुम्हारी शिरकत के बगै़र''
फिर वो गोद में उठाया हुआ चाँद
मेरी तरफ़ बढ़ा कर बोली:
''इस के सर पर हाथ रखो
और क़सम खाओ
अपनी बे-गुनाही की
अपनी मासूमियत की''
और मैं उस का मुँह तकता रह गया
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