रास्ते को सभी कर के ज़ीशान तू
नूर का ही कही फिर था पैमान तू
मेरा अपना गिरेबान तो चाक है
दिल की बस्ती का खाली सा मीज़ान तू
मेरे हालात से मुत्मइन हैं सभी
मेरे किरदार से अब है अंजान तू
मैं तो साहिल से फिर लौटकर भी कहीं
उजड़ी कश्ती का ही फिर है सामान तू
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