बू-ए-मोहब्बत को जहाँ में फ़ैल जाने दो ज़रा
ये तितलियों को फिर गुल-ए-नर्गिस पे आने दो ज़रा
कब से शब-ए-उम्मीद हूँ दीदार की ख़ातिर तिरी
इक बार तो बंदे को हाल-ए-दिल सुनाने दो ज़रा
अब देखना है ये समंदर किस तरफ ले जाता है
लहरों की बाहों में मिरी कश्ती को आने दो ज़रा
जो मुफ़्लिसी की आड़ में बचपन को भूले बैठे हैं
तालाब में फिरसे उन्हें गोते लगाने दो ज़रा
किस ने कहा फिरसे मोहब्बत की नहीं जा सकती है
ये ग़म-ज़दा लोगों को फिरसे दिल लगाने दो ज़रा
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