Shehbaz Gohar

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Shehbaz Gohar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Shehbaz Gohar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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"कोई नहीं मिला हमें"
तमाम उम्र हम न जाने कौन से ख़ुदा को पूजते रहे
न जाने कौन सी नदी के पानियों में चाँद ढूँडते रहे
पराई रौनकों में ख़ुश रहे
अजीब रौशनी थी जिसमें कुछ नज़र न आ सका
शहर में रोज़गार ढूँडते देहातियों को क्या पता
बड़े घरों की लड़कियों की आदतें
कभी किसी के वास्ते गर अपने-आप को सँवारते तो और भी बुरे लगे
कभी किसी की आँख से बहे भी तो पता नहीं चला हमें
कभी किसी को प्यार का यक़ीं न दिला सके
फ़क़त हम अपने दोस्तों के नामाबर बने रहे
कोई नहीं मिला हमें
हुजूम-दर-हुजूम हाथ थे जो एक-दूसरे को चूमते चले गए
कोई नहीं मिला हमें
हमारा दिल हमारी जेब में पड़ा रहा
जहान दिल से देखते या जेब से?
ये फ़ैसला नहीं हुआ कभी
मगर हमें ये इल्म था
ख़ुदा के घर में सब के सामने
किसी के होंठ चूमना बुरा नहीं
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"तेरी आँखें किसी भी क़ैफ़ियत में मुब्तला करने को काफ़ी हैं"
तेरी आँखें किसी भी क़ैफ़ियत में मुब्तला करने को काफ़ी हैं
तेरे आँसू किसी भी ग़म में रोये आँसुओं में सबसे अफ़जल हैं
तेरे रूख़्सार जिन हाथों पे उतरे हैं
वही दस्त-ए-हसीं सय्याहगाहोे में नए रस्ते दिखाते हैं
तेरे लहज़े में अच्छे दिन निकलते हैं
तेरे होठों से निकले लफ़्ज़ नज़्में हैं
ये उन नज़्मों से बेहतर है जो मैंने तंगदस्ती के ज़माने में लिखी थी
तुझे नज़दीक़ से जो देखते हैं उनकी क़िस्मत है
वगरना ख़्वाब हर इक आँख पर नाज़िल नहीं होते
तू बरतर है सितारों और रंगों से भरे गाँवों से बरतर है
अगर तू खंडहरों में जा बसे फिर भी तेरा चेहरा कभी मद्धम नहीं होगा
खंडहर आबाद होंगे पुराने घर नई गलियोॆ से ही आबाद होते हैं
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"मुझे इक नज़्म लिखनी चाहिए थी"
मुझे इक नज़्म लिखनी चाहिए थी
अस्पतालों में पड़े बीमार पुर्सो पर
मुझे दरिया बदलती क़श्तियों
और बंद होते फाटकों पर
नज़्म लिखनी चाहिए थी ऐसे लोगों पर
जिन्हें लिखना नहीं आता
जिन्हें रोना नहीं आता
किसी अंधे भिकारी के तआरूफ़ में
और अपने शहर के फूटपाथ पे बिकती दुआओं पर
किसी उँची इमारत पर जहाँ कोई न जाता हो
किसी बूढे सिपाही पर जिसे लड़ना न आता हो
किसी औरत के भद्दे जिस्म पर
दीवार से लटकी हुई तलवार पर
और बंद कमरों पर
मुझे इक नज़्म लिखनी चाहिए थी नज़्म कहती लड़कियों पर
सस्ते तोहफ़ों पर
किसी मल्लाह के दरिया में गिरते आँसुओं पर
और उस माज़ूर बच्चे पर जिसके साथ कोई खेलता न हो
मुझे इक नज़्म लिखनी चाहिए थी
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