बाद मेरे मरने के फिर किसे सज़ा दोगे
अपनी इन जफ़ाओं से फिर किसे क़ज़ा दोगे
मेरी झील का पानी फीका है तो रहने दो
अपने लम्स से इस को शीरीं तुम बना दोगे
साँस थाम कर है जो मुंतज़िर तेरा आशिक़
मर गया तो क्या उसको क़ब्र से उठा दोगे
मैं ने तो न देना ये इम्तिहान दोबारा
इश्क़ का जो पेपर तुम ज़ात का बना दोगे
जीने-मरने की क़समें कहने भर की बातें हैं
बस दो चार दिन में ही मुझ को तुम भुला दोगे
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