Uday Bansal

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@uday-bansal

Uday Bansal shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Uday Bansal's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Nazm
बचपन में जब मैं शाम को
गाड़ी की खिड़की से
झाँक कर देखता
तो मुस्कुराते दूधिया सफ़ेद चाँद को
अपने बग़ल में पाता
मानो मुझ से दौड़ लगा रहा है

कोई भी सड़क कोई भी मोड़
किसी भी सम्त किसी भी ओर
मैं जहाँ भी जाऊँ मुझ से क़दम से क़दम मिला रहा है
पर जाने क्यों
ये मुझ से जीतने के लिए नहीं दौड़ता कि
मैं जब रुकूँ ये रुकता है
मैं जब चलूँ या चलता है
गाड़ी रफ़्तार पकड़े चाँद भी रफ़्तार पकड़ता है
गाड़ी रेड लाइट पर रुके चाँद भी रुकता है

अब बड़ा हो रहा हूँ तो
ज़िंदगी से दौड़ लगा रहा हूँ
ज़िंदगी संग-दिल है
मैं आगे रहूँ या पीछे ज़िंदगी नहीं रुकती है
मुझे ज़िंदगी से दौड़ नहीं लगानी
चाँद निकल आया है तो गाड़ी भी निकालो
मुझे चाँद से दौड़ लगानी है
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जब कभी मैं अपनी कोई
पुरानी लिखी नज़्म उठाऊँ
तो वो कुछ बदली बदली सी लगती है
उसे जितनी बार पढ़ो उतनी ही बार
मेरी राय उस के बारे में बदलने लगती है
कि कभी नज़्म जी को अच्छी लगती है
तो कभी अखरती है
कभी चेहरे पे मुस्कान तो कभी माथे पे शिकन
आने लगती है

इस उलझन का क्या कोई हल है
क्या मैं अपने क़लम पे भरोसा कर
अपनी चिंताओं को नज़र-अंदाज़ कर
अपनी नज़्में दुनिया के हवाले कर सकता हूँ
क्या मैं ये जोखम ले सकता हूँ
नतीजा कुछ भी हो
मोती की तलाश में समुंदर की गहराइयों में
ग़ोता-ख़ोर जाने से ख़ुद को रोक नहीं सकता
बारिश हो न हो फ़स्ल उगे न उगे
किसान बोवाई करना हल चलाना छोड़ नहीं सकता

अगर ग़ौर किया जाए
तो जोखम वो मोल ले रहा है
जो मेरी नज़्में पढ़ने वाला है
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हथियार हाथ में लिए साँस रोके आँखें खोले
शिकार की ताक में बैठा हूँ मैं चूक की कोई गुंजाइश ही नहीं
न ज़रा सी भी नहीं
कि हल्की से हल्की हरकत पर
आँखों से ओझल हो जाने के लिए मशहूर है मेरा शिकार
बिजली सा तेज़ लोमड़ी सा चालाक-ओ-चतुर है मिरा शिकार

बड़ा ही जोखम भरा खेल है शिकार
आँख और कान बचा कर
सीधे आँख पर धावा बोलता है मेरा शिकार
और ऐसी ख़ौफ़नाक आवाज़
रातों की नींद उड़ा देता है मेरा शिकार

शिकार खिलाड़ियों का खेल
शिकार ताज-ओ-तख़्त वालों का खेल
राजा महाराजा नवाब ओ अफ़सर
जागीर-दार ज़मींदार वॉय्सरॉय गवर्नर
सदियों से साहिबों को मसरूफ़ रखता ये खेल

मैं भी कोई ख़ाली नहीं बैठा
हथियार हाथ में लिए
साँस रोके आँखें खोले
शिकार की ताक में बैठा हूँ मैं
खिड़की के पार अख़बार मोड़े बे-ख़ौफ़
मक्खी के इंतिज़ार में बैठा हूँ मैं
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