हाय ज़ालिम और फ़र्ज़ी सी ख़ुमारी हो न जाए
जो बची नफ़रत दिलों में है पुरानी हो न जाए
भुखमरी में बद्दुआओं से मुझे डर लग रहा है
जो फ़कीरों ने कहा था वो कहानी हो न जाए
गर बदन की अचकनें कम हो रही हैं तो लगेगा
ज़िंदगी भर के लिए वो अब तुम्हारी हो न जाए
आप से ये दोस्ती तो बच नहीं पायी कहूँ क्या
अब कहीं ये दुश्मनी भी ख़ानदानी हो न जाए
शहर में वो सिर्फ़ अरमानों तले आया हुआ है
बोझ ज़िम्मेदार है जिसका सवाली हो न जाए
पान खाती लड़कियाँ जो दूर से तुम देखते हो
ये तुम्हारी आँख जो है ज़ाफ़रानी हो न जाए
ग़ौर से मत देख उसको वो तुझे भैया कहेगी
छोड़ जाने दे कहीं वो बद-गुमानी हो न जाए
शायरा परवीन जैसी मैं मुहब्बत देख भी लूँ
यार सरवत ट्रेन वाली ज़िन्दगानी हो न जाए
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