बस्ती जंगल शहर समुंदर एक ही धुन में गाते हैं
जब उसकी यादों के सावन दिल में खिलने आते हैं
दिल की बगिया में उसकी यादों के सावन खिलते हैं
तितली सज कर आती है फिर भँवरे भी मुस्काते हैं
बातों ही बातों में जब वो मुझको अपना कहती है
मंज़िल अपनी लगती है सारे रस्ते खुल जाते हैं
उसके सादापन की तो ये कुदरत भी दीवानी है
आहू उसके बालों में कंघी करने को आते हैं
जब उसके घुँघराले से बालों में कंघी फँसती है
सूरज मद्धम हो जाता है काले बादल छाते हैं
अपने होटों से वो हवाएँ चूम के भेजा करती है
वो पैग़ाम परिंदे फिर मेरी टैरिस पर लाते हैं
उसकी निगाहों की तासीरें क्या समझाऊँ कैसी हैं
उसको देखने वाले हैं जो देखते ही रह जाते हैं
दिल कहता है गीत बनाकर ताउम्र उसे मैं गाऊँ
दिल के अरमाँ लेकिन बाहर आने से घबराते हैं
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