क्यूँ है तू ऐसे खफ़ा क्या ग़म है
आ इधर बैठ बता क्या ग़म है
कोई भी तो तेरी जानिब है नहीं
फिर यहां कैसा मज़ा क्या ग़म है
वो रिझाता नहीं है क्यूं मुझको
उसको भी तो है पता क्या ग़म है
जन्मदिन पे यूँ ही ख़ुश हैं ये लोग
जन्म लेने से बड़ा क्या ग़म है
उसको ये ग़म है कि मैं हूँ ग़मगीन
इससे प्यारा-ओ-भला क्या ग़म है
हमने सोचा था ख़सारा होगा
हो गया उल्टा नफ़ा क्या ग़म है
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