दोस्ती को इस तरह हमसे निभाना एक दिन

  - Prashant Arahat

दोस्ती को इस तरह हमसे निभाना एक दिन
घर हमारे यार अब फ़ुर्सत में आना एक दिन

हम अभी गर्दिश में हैं गुमनाम हैं पर देखना
खोजता हमको फिरेगा ये ज़माना एक दिन

हम सुनाएँगे तुम्हें फ़ुर्सत से अपनी शायरी
जब इरादा हो तुम्हारा घर बुलाना एक दिन

यूँ नहीं हम भी रहेंगे अब किराए पर सदा
हम बनाएँगे यहीं पर आशियाना एक दिन

एक ग़लती पर सभी अच्छाइयों को आपकी
भूल जाता है यहाँ सारा ज़माना एक दिन

खोजते तुम फिर रहे हो मंदिरों में जो सुकूँ
पाँव तुम माँ बाप के अपने दबाना एक दिन

एक दिन आफ़त में डालेगा मुझे ये देखना
नाम तेरा नींद में यूँ बड़बड़ाना एक दिन

  - Prashant Arahat

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