दोस्ती को इस तरह हमसे निभाना एक दिन
घर हमारे यार अब फ़ुर्सत में आना एक दिन
हम अभी गर्दिश में हैं गुमनाम हैं पर देखना
खोजता हमको फिरेगा ये ज़माना एक दिन
हम सुनाएँगे तुम्हें फ़ुर्सत से अपनी शायरी
जब इरादा हो तुम्हारा घर बुलाना एक दिन
यूँ नहीं हम भी रहेंगे अब किराए पर सदा
हम बनाएँगे यहीं पर आशियाना एक दिन
एक ग़लती पर सभी अच्छाइयों को आपकी
भूल जाता है यहाँ सारा ज़माना एक दिन
खोजते तुम फिर रहे हो मंदिरों में जो सुकूँ
पाँव तुम माँ बाप के अपने दबाना एक दिन
एक दिन आफ़त में डालेगा मुझे ये देखना
नाम तेरा नींद में यूँ बड़बड़ाना एक दिन
As you were reading Shayari by Prashant Arahat
our suggestion based on Prashant Arahat
As you were reading undefined Shayari