बस यही बात मुझको खलती है
क्यूँ भला साँस मेरी चलती है
एक रस्ता है ख़ुदकुशी अब तो
अब ये वहशत नहीं सँभलती है
हाय ये चाँद क्यूँ नहीं मरता
हाय ये धूप क्यूँ निकलती है
इश्क़ आता नहीं कभी तन्हा
इक उदासी भी साथ चलती है
मेरी बाहों में जो बहलती थी
किसकी बाहों में अब मचलती है
पाँव में बाँध कर नयी पायल
ख़ामुशी छत पे क्यूँ टहलती है
जुगनुओं तुम ही मुझको बतलाओ
रात कपड़े कहाँ बदलती है
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Ashutosh Kumar "Baagi"
our suggestion based on Ashutosh Kumar "Baagi"
As you were reading Udasi Shayari