तेरे ऊपर थे जो मँडराते वो अब भँवरे किधर हैं
मेरी आँखें ढूँढती हैं तेरे वो गहने किधर हैं
कैसी हालत में यूँ मिलने आज आई है तू मुझसे
तेरे कानों में ये बाली क्यूँ तेरे झुमके किधर हैं
अब के जो आया मैं मिलने तो उन्हें भी देख लूँगा
जो परेशाँ थे तुझे करते वो अब लड़के किधर हैं
ढूँढ़ता हूँ अब जो इन आँखों में तो मिलते नहीं वो
जो भी हमने साथ देखे थे वो अब सपने किधर हैं
थोड़ी फ़रमाइश भी कर मुझपे ज़रा हक़ भी जमा तू
सर पे बैठाना है तुझको तेरे वो नख़रे किधर हैं
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