दिल भी धुआँ-धुआँ चश्म-ए-पुरनम भी
जी मुब्तला-ए-मसरूर और ग़म भी
शादी में भी रश्क-ए-क़मर है वो और
आज तो झुमके भी और ज़ुल्फ़-ए-ख़म भी
बस एक तिश्नगी की देरी सब को
फिर क्या गंगा क्या आब-ए-ज़मज़म भी
ख़ुशियाँ मुझ पर शफ़ीक़ होती है यूँ
रफ़्ता-रफ़्ता अक्सर अक्सर कम भी
ये क्या बात हुई ओ यार-ओ-अहबाब
दम से हम और दम से घटता दम भी
तेरी आँखों के कितने हैं क़ाइल
शेर हमारे नींद हमारी हम भी
किया गुनाह-ओ-सवाब का ब्यौरा जब
शाद-ख़ुशी के साथ हुआ मातम भी
ग़ुबार-ए-याद-ए-माज़ी यूँ उठता है
पल में शोला पल भर में शबनम भी
इक औरत से मुझको दुख ही दुख है
और फिर ये दुख भी वो ही मरहम भी
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