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मैं कभी तेरे बराबर नहीं हो सकता दोस्त - Mukesh Jha

मैं कभी तेरे बराबर नहीं हो सकता दोस्त
मिट्टी हो सकता हूँ पत्थर नहीं हो सकता दोस्त

मैं तेरी आँख का आँसू तो हो सकता हूँ मगर
मैं तेरी आँख का कंकर नहीं हो सकता दोस्त

मेरी तासीर अलग है तेरी तासीर अलग
मैं कभी तुझ सा सितमगर नहीं हो सकता दोस्त

कितनों ने प्यास बुझाई है रवानी में मेरी
चाह कर भी मैं समंदर नहीं हो सकता दोस्त

मैं ज़ियादा से ज़ियादा तेरा हो भी जाऊँ
तू मगर मुझको मयस्सर नहीं हो सकता दोस्त

कम से कम इक दफ़ा तो तय है मुहब्बत में हार
इश्क़ में कोई सिकंदर नहीं हो सकता दोस्त

वो समझता है ग़लत मुझको हर इक बात पे पर
ये यक़ीं है वो सितमगर नहीं हो सकता दोस्त

ख़ुद को ख़ुद में ही छुपाए हुए फिरता हूँ यहाँ
जितना अंदर हूँ मैं, बाहर नहीं हो सकता दोस्त

- Mukesh Jha

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