हक़ में हमारे जो था मिला नहीं क्या कुछ
कातिब-ए-तक़दीर से गिला नहीं क्या कुछ
पर्दा-नशीं देख कर उस एक कली को
मिस्ल गुलों के वहाँ खिला नहीं क्या कुछ
लोग की इंसानियत निबाह रहे हैं
बीच हमारे तो सिलसिला नहीं क्या कुछ
हार पर अपनी तू इश्क को न बुरा कह
और तरफ़ देख अम्सिला नहीं क्या कुछ
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