भले घर की न वहशत देख
मगर इस दर की हसरत देख
न देखा तू ने मेरी ओर
कभी मेरी अज़िय्यत देख
ख़ुशी है दीद से तेरी
इसे मेरी न फ़रहत देख
बस आहट से तिरी है ख़ुश
दिल-ए-नादाँ की रग़बत देख
नहीं मुमकिन मिरा होना
मगर मेरी मोहब्बत देख
न मेरा हो सका वो क्यूँ
ख़ुदाया मेरी मन्नत देख
हुई मेरी मोहब्बत की
इबादत में जो शिरकत देख
तवज्जोह भी न दे जो 'श्रेय'
उसे क्या कहना उल्फ़त देख
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