दिल की ज़िद ये बन गई है मुझको बस तू चाहिए
इस घनी सी रात में अब कोई जुगनू चाहिए
मत हँसाओ मुझको तुम सब मुझको दुख ख़ालिद है बस
छोड़ दो तन्हा मुझे अब मुझको आँसू चाहिए
थक चुका हूँ मैं ग़ुलामी करते करते लोगों की
अब नहीं डरना किसी से ख़ुद पे क़ाबू चाहिए
तौलना है धन मुझे और तौलना है ये ग़ुमान
मुझको अब तलवार नइँ मुझको तराज़ू चाहिए
एक तुझको पाने के ख़ातिर मेरा सर झुकता था
वक़्त मेरा है तुम्हें अब मेरा बाज़ू चाहिए
सारी दुनिया से मैं चिल्ला-चिल्ला कर ये कहता था
ज़िद थी मेरी चाहिए तो बस वो ख़ुश्बू चाहिए
इस तरह से रात अपनी,काट नइँ पाऊँगा मैं
शेर कहने हैं मुझे अब मुझको दारू चाहिए
रस्ते में आई रूकावट पे हनन करना है अब
वक़्त जैसी धार हो जिसमें वो चाकू चाहिए
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