सहन ए गुलशन में कभी जब भी तेरा नाम लिया
बढ़ के मुंह बाद ए बहारी ने मेरा थाम लिया
राह ए दिल में भी गवारा न हुई ख़ामोशी
फ़ैसला जो भी लिया मैंने बहंगाम लिया
मेरे हाथों की लकीरों में चमक भर आई
तेरे क़दमों को हथेली पे ही जब थाम लिया
मिट गई प्यास फ़रिश्तों की भी सदियों के लिए
मैंने जब दस्त ए हिनाई से तेरे जाम लिया
मेरी इस दरिया दिली पर हों दो आलम क़ुर्बान
अक़्ल होते हुए भी दिल से सदा काम लिया
अपनी क़िस्मत पे सितारों ने बहाए आँसू
मैंने बोसा जो कभी तेरा लब ए बाम लिया
सुबह सूरज जो तबस्सुम से तेरे चमका था
मैंने वो सारा हिसाब उससे सर ए शाम लिया
मुझको काफ़िर वो कहें या कि बिरहमन मानें
मैंने तो तेरी इबादत की तेरा नाम लिया
इतनी चाहत थी तेरी दीद की आँखों में नदीम
मेरी पलकों ने तमाम उम्र न आराम लिया
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