दर्द जब आँख के बाम-ओ-दर होते हैं
क्या करें शाम को सब ही घर होते हैं
झपकियाँ लेती आँखें उचट जब गईं
तब हुआ इल्म माज़ी के पर होते हैं
जब बदन से निकल कर कोई रोता है
रूह के दिल दिमाग़ और सर होते हैं
जिनसे उम्मीद है सबकी कुछ करने की
लोग वो ख़ुद से ही बे-ख़बर होते हैं
मिल के जो परवरिश करते हैं बच्चों की
अस्ल में वो ही कुंबा प्रवर होते हैं
जो समझते हैं दुख दूसरों का वही
लोग सच्चे ख़ुदा के बशर होते हैं
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