मुहब्बत की अगर इस दिल को बीमारी नहीं होती
मुसीबत मुझ पे दुनिया की कोई तारी नहीं होती
अगर मेरे क़बीले में अलमदारी नहीं होती
यक़ीनन मेरी नस्लों में वफ़ादारी नहीं होती
तरक़्क़ी याबी से महरूम रह जाती हैं वो क़ौमें
जवाँ बच्चों में जिन क़ौमों के बेदारी नहीं होती
ख़ुदा का शुक्र सब हिन्दा मिज़ाजी के मुख़ालिफ़ हैं
हमारे शहर में हमज़ा जिगरख़्वारी नहीं होती
इसे सीने के अन्दर से निकालो फेंक दो बाहर
सबील-ए-इश्क़ नहर-ए-दिल से गर जारी नहीं होती
अगर हम मक़सद-ए-करबोबला तक आ गए होते
तो हक़ गोई में हमको कोई दुश्वारी नहीं होती
सदा रुसवाइयाँ बनती हैं उन लोगों की तक़दीरें
लहू में जिनके भी तहज़ीब-ए-ख़ुद्दारी नहीं होती
तिरे सजदे तेरी बख़्शिश को काफ़ी थे हक़ीक़त में
अगर तेरी इबादत में रियाकारी नहीं होती
शजर हम जिससे मिलते हैं ख़ुलूस-ए-दिल से मिलते हैं
कभी भी हमने रिश्तों में अदाकारी नहीं होती
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