ख़ुशी के लम्हें ग़मों में बदल रहे होंगे
कहीं पे फूल कहीं दिल कुचल रहे होंगे
वो ज़ुल्फ़ें खोल के घर से निकल रहे होंगे
हर एक गाम पे मौसम बदल रहे होंगे
रह-ए-वफ़ा पे जो हम साथ चल रहे होंगे
मुनाफ़िक़ीन की आँखों में खल रहे होंगे
गवाही देता है किरदार आपका इसकी
बुज़ुर्ग आपके सब बा-अमल रहे होंगे
कभी न सोचा था हम ज़िंदा लाश के जैसे
तुम्हारी डोली के हमराह चल रहे होंगे
जो नज़्र-ए-आतिश-ए-हिज्राँ हुए हैं ख़्वाब वो सब
दयार-ए-चश्म पे दीपक से जल रहे होंगे
कहीं पे होगा वो मसरूफ़ बाग़-बानी में
चमन में उसके कई फूल-फल रहे होंगे
हमारी तरह शजर क़ल्ब-ए-शाहज़ादी में
विसाल-ए-यार के अरमाँ मचल रहे होंगे
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