सदा-ए-कल्ब-ए-हज़ी को सुनो गर आशिक़ हो
ये बस्ती छोड़ के सहरा चलो गर आशिक़ हो
तवाफ-ए-खा़ना-ए-काबा है मोमिनों के लिए
तवाफ-ए-तुर्बत-ए-मजनू करो गर आशिक़ हो
तुम्हारे वास्ते अच्छा नहीं ये बाब-ए-विसाल
के बाब-हिज्र को दिल से पढ़ो गर आशिक़ हो
यूं रोज़ ख़्वाब में आने से फ़ायदा क्या है
तुम हमसे रु-बा-रु आकर मिलो गर आशिक़ हो
वफ़ा की राह में साबिक़ क़दम रखो अपने
जहान वालों से तुम मत डरो गर आशिक़ हो
निशान-ए-तुर्बत-ए-लैला ओ क़ैस मिट न सके
दिफ़ा है आप पे वाजिब सुनो गर आशिक़ हो
अगरचे इश्क़ पा आंच आई जां लुटा देंगे
ये बात बर सरे महफ़िल कहो गर आशिक़ हो
न खाओ हाकिमों का खौफ ऐ अनारकली
हमारे सीने से आकर लगो गर आशिक़ हो
यूं उसकी याद में रोने से कुछ नहीं होगा
तुम उसकी याद में सिगरेट पियो गर आशिक़ हो
बग़ैर इश्क़ किये ज़िन्दगी अधूरी है
क़लम उठा के शजर ये लिखो गर आशिक़ हो
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