मता-ए-जाँ मेरी लैला हिजाब पहना करो
बहुत ख़राब है दुनिया हिजाब पहना करो
ग़ज़ल लिखूँगा अगर मैं कभी तो वादा है
रदीफ़ उसकी रखूँगा हिजाब पहना करो
सुनो हिजाब में बिल्कुल परी सी लगती हो
ऐ मेरी जान-ए-तमन्ना हिजाब पहना करो
तुम्हारी सखियाँ सभी बा हिजाब रहती हैं
तो जान तुम भी ख़ुदारा हिजाब पहना करो
है यूँ तो चाँद से प्यारा ये चेहरा-ए-अनवर
लगेगा और भी प्यारा हिजाब पहना करो
हिजाब तुम नहीं पहनोगी जब तलक ऐ सनम
मैं तब तलक ये कहूँगा हिजाब पहना करो
हमारे साथ में मिलकर उठो चलो यारों
बुलन्द ये करो नारा हिजाब पहना करो
सुनो सहेलियों मैं जब हिजाब पहनूँगी
अगर शजर ये कहेगा हिजाब पहना करो
शजर जो ख़त लिखो इस बार शाहज़ादी को
तो सबसे पहले ये लिखना हिजाब पहना करो
शजर के कहने से मैंने पहन लिया है हिजाब
ग़ज़ल को अब करो पूरा हिजाब पहना करो
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