इस साल इस तरह से मैं होली मनाऊँगा
रूख़सार पर गुलाल तुम्हारे लगाऊँगा
फिर रफ़्ता रफ़्ता आपसे नज़रें मिलाऊँगा
नज़रें मिला के आपकी नींदें चुराऊँगा
मुझसे बिछड़ते वक़्त ये बतलाते जाइए
तन्हा मैं कैसे ये ग़म-ए-हिज्राँ उठाऊँगा
कसरत से तुमको बाँहों में अपनी समेटकर
सारे मुनाफ़िकों के कलेजे जलाऊँगा
होगा नुज़ूल बर सर-ए-महफ़िल जब आपका
ज़ेर-ए-पा आपके मैं गुलों को बिछाऊँगा
चूमूँगा पहले होंठों से पेशानी चाँद सी
फिर तुमको जान-ए-जानाँ गले से लगाऊँगा
वादा है मेरी जान मुहब्बत में आपकी
तामीर एक ताजमहल मैं कराऊँगा
अपना हैं कौन कौन पराया है दोस्तों
ये जानने को मैं दिया घर का बुझाऊँगा
जो गज़लें लिख रहा हूं तसव्वुर में मैं तेरे
तेरी सहेलियों को वो ग़ज़लें सुनाऊँगा
वो जो शजर है सहरा में तन्हा खड़ा हुआ
उसको मैं दिल के कूचे में लाकर लगाऊँगा
Read Full