बहुत आसाँ किसी को भी निशाना कर बुरा कहना
कहीं भी जो नहीं तुमको दिखे, उसको ख़ुदा कहना
गुलाबों को हमेशा तोड़ देते मन मुताबिक़ तुम
ग़लत-फ़हमी समझना ये कि चुप्पी को रज़ा कहना
हदों की मुंतहा पर है खड़ा ये मुंतज़िर रहना
लिया जाए दुबारा साँस, तो उसको सज़ा कहना
दिखा हमको जहाँ उस वक़्त नक़्क़ाशी मे ज़िंदा जो
कि पत्थर-दिल था जिसको भूल बैठे हम मरा कहना
कि मय-ख़ानों के मज्मे का कभी तुम जायज़ा लोगे
सभी प्यालों को तुम फ़िर नाप, कितनी मिल जफ़ा कहना
मुहब्बत से मिले जो रस्तगारी, लौट जाऊँ घर
थकन रस्ते कि ज़्यादा, और ना चलने ज़रा कहना
कि आँखों पर भरोसा इक दफ़ा कर देख लो तुम भी
खुले जब नींद, तो उस ख़्वाब को तुम बे-वफ़ा कहना
क़बाहत विश्व की, हर दम ज़ुबाँ सबकी फ़िसलती है
सभी को हो हवस पैसों कि, अपनों को जुदा कहना
लहर था मैं, मुझे होनी किनारो से अदावत थी
मगर अहबाब पूछे कोइ, उसको तुम सबा कहना
लगे जब अंधियारे में तिरे नस्दीक है कोई
पुकारे रौशनी तुझको, उसे मेरी सदा कहना
दिलाई थी मुझे फुर्क़त कि आदत यार तुम्हीं ने
बहाना अब, सबब दूरी का तुम्हारा वबा कहना
करे मुंसिफ़ से कोई शख़्स तेरी अब खिलाफ़त क्या
अदालत भी तिरी, इंसाफ़ को जैसे मज़ा कहना
मिरा अग़्यार पर दिल को लुटाना, अक़्ल ना मुझको
बताने को हमें अपनी जुबांँ से अब गिला कहना
खुदी मे'यार कम करते, करे फ़िर क्या पशेमानी
बताऊँ अब किसे अपना, लगे अपनी ख़ता कहना
अगर दर पर सुनाई दे मुझे दस्तक, चला जाऊँ
नहीं ग़र 'ज़ैन' लौटा, तो ख़ुदा की तुम निदा कहना
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