ठीक हुआ जो बिक गए सैनिक मुट्ठी भर दीनारों में
वैसे भी तो ज़ंग लगा था पुश्तैनी हथियारों में
सर्द नसों में चलते चलते गर्म लहू जब बर्फ़ हुआ
चार पड़ोसी जिस्म उठा कर झोंक आए अँगारों में
खेतों को मुट्ठी में भरना अब तक सीख नहीं पाया
यूँ तो मेरा जीवन बीता सामंती अय्यारों में
कैसे उस के चाल-चलन में अंग्रेज़ी अंदाज़ न हो
आख़िर उस ने साँसें लीं हैं पच्छिम के दरबारों में
नज़दीकी अक्सर दूरी का कारन भी बन जाती है
सोच-समझ कर घुलना-मिलना अपने रिश्ते-दारों में
चाँद अगर पूरा चमके तो उस के दाग़ खटकते हैं
एक न एक बुराई तय है सारे इज़्ज़त-दारों में
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