नाम पे तेरे मुझे मारा गया ये क्या ख़ुदा
ये मिला मुझको इबादत का सिला ये क्या ख़ुदा
सम्त उसकी आ रहे था तीर जो मैं खा गया
आख़िरश मैं तेग़ से उसकी मरा ये क्या ख़ुदा
इक तरफ़ कुछ गर्म सा लगता है बिस्तर आज भी
जो की सोता था उधर वो तो गया ये क्या ख़ुदा
एक पल को इक हॅंसी सी छूटती है और फिर
बस वहीं पर हो मैं जाता चुप खड़ा ये क्या ख़ुदा
मैं उसे जकड़े हुए था और वो कहती गई
कर रहीं हूॅं वापसी सू-ए-ख़ुदा ये क्या ख़ुदा
ख़ूॅं पसीने से ख़रीदी एक गाड़ी और उधर
मेरे बचपन का वो झूला जल गया ये क्या ख़ुदा
अब से पहले भी तो रसमन ये इबादत की गई
आज कैसे ये मिरा ऑंसू बहा ये क्या ख़ुदा
मैं सरापा प्यार था ख़ुशवार था हुश्यार था
मैं अचानक शायरी करने लगा ये क्या ख़ुदा
As you were reading Shayari by Yusha Abbas 'Amr'
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