नज़र नज़र में मिरा दिल चुरा लिया उसने
कि रात बाम-ए-फ़लक पर बुला लिया उसने
मुझी को देख रही थीं बहिश्त की परियाँ
नज़र उतार के दिल में छुपा लिया उसने
कोई हसीन मुझी पर फ़िदा न हो जाए
पकड़ के हाथ कने ही सुला लिया उसने
नहीं हुआ मरज़-ए-ला-'इलाज ठीक कहीं
ख़ुदा के पास भी मुझको दिखा लिया उसने
कहा था वक़्त-ए-मुलाक़ात याद रखियो बस
मिरा तो नाम लबों पर सजा लिया उसने
खरोंच आई ज़रा सी मुझे सो गुस्से में
ख़ुदा को आज कि सर पे उठा लिया उसने
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