शिकवे गिले थे जो भी मिटा कर चले गए
अपना हमें वो आज बता कर चले गए
नामी चना-फ़रोश वो हम भी नहीं थे कम
उनके चने उन्हीं को चबा कर चले गए
हमको तलब थी उनके लब-ए-जाम की मगर
वो आँख से ही प्यास बुझा कर चले गए
हमने भरे थे ताल यूँ ही सैल-ए-अश्क से
वो आए और सब में नहा कर चले गए
इतना डरा हुआ था मैं महफ़िल में आपकी
सब उँगलियाँ मुझी पर उठाकर चले गए
पहले से ही लगे हुए थे ज़ख़्म एक तो
ऊपर से उस्तरा भी लगाकर चले गए
हमने सिखाए उनको मोहब्बत के तजरबात
वो बेवफ़ा हमीं को बता कर चले गए
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