मुख़्तलिफ़ चमड़ी हो पैरहन के लिए

  - Akhil Saxena

मुख़्तलिफ़ चमड़ी हो पैरहन के लिए
इक शिकारी छुपा है हिरन के लिए

आपने डिग्रियाँ ले तो ली हैं मगर
ज़ख़्म भी चाहिए था सुख़न के लिए

इसलिए मैं अभी मर भी सकता नहीं
घर में पैसे नहीं हैं कफ़न के लिए

क्या अजब दोग़ुला है कि दिल माँगकर
फिर बदन ढूँढ़ता है बदन के लिए

मुझको छूते ही रस्ता बदल लेती है
जैसे ख़ारिज जगह हूँ किरन के लिए

महँगे तोहफ़ों ने ले ली जगह फूल की
कोई ख़तरा नहीं अब चमन के लिए

गर लुग़त में न हो लफ्ज़-ए-हिज्र-ओ-विसाल
कितने शाइर बचेंगे सुख़न के लिए ?

  - Akhil Saxena

More by Akhil Saxena

As you were reading Shayari by Akhil Saxena

Similar Writers

our suggestion based on Akhil Saxena

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari