कुछ नहीं आता मुझे भी आशिक़ी को छोड़कर
पास मेरे कुछ नहीं है शायरी को छोड़कर
मैं अभी भी हूँ अधूरा जान गर मैं सच कहूँ
पा लिया मैंने सभी कुछ इक तुझी को छोड़कर
वो गया है तो मिरे जीवन में ये दुख आ गए
वो गया है मेरी आँखों में नमी को छोड़कर
राम का ही नाम लेकर मैं हूँ आगे बढ़ रहा
राम आगे जाएँ कैसे इक दुखी को छोड़कर
इन ग़मों ने लगता है बस मुझको ही है चुन लिया
लोग सारे दिखते हैं ख़ुश बस मुझी को छोड़कर
बात मेरी मानो तुम गर रहना तुमको ख़ुश सदा
सब पे करना तुम भरोसा आदमी को छोड़कर
आप को ही मानता हूँ अपना केवल आप को
कौन है अपना यहाँ पर आप ही को छोड़कर
उसको भी अफ़सोस है शायद मियाँ इस बात का
इश्क़ कर लेती मैं उस से दोस्ती को छोड़कर
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