मिसरा भी फूटी आँख से आँसू निकाल दे
फ़न्न-ए-सुख़न को मेरे तू ऐसा कमाल दे
दुनिया को मत दिखा तू इन्हे अब छुपा के रख
ऐसा न हो के ज़ख़्म कोई छील छाल दे
मरने के बाद क़ब्र में पाया है अब सकूँ
जब तक था ज़िंदा कहते थे सब माल टाल दे
मैं चुभ रहा हूँ आँख में मुझ से निजात पा
काँटा उठा तू काँटे से काँटा निकाल दे
अल्लाह का निज़ाम है दोनो जहाँ का दोस्त
किस को वो दे उरूज किसे वो ज़वाल दे
बचने का रोग- ए- इश्क़ से बस एक है इलाज
नाम- ए- ख़ुदा पे जान का सदक़ा निकाल दे
बहरों को सीख साख के शाइर हुआ है कौन
शाइर है वो जो शेर को उम्दा ख़याल दे
कर दे करम ख़ुदा के मैं साहिल पे जा लगूँ
इस डूबते को लहर कोई तो उछाल दे
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