किया है इश्क़ बता तूने क्या कभी जुगनू
जलाए फिरता है ख़ुद को जो हर घड़ी जुगनू
भले लुटाए ज़माने में रौशनी जुगनू
शफ़क़ की कर न सकेगा बराबरी जुगनू
मिला जो शम्स से नश्शा उतर गया सारा
बनाए फिरता था बातें बड़ी बड़ी जुगनू
हर एक सम्त यूँ तीरा-शबी में उड़ता है
तुझे भी जैसे मिली हो पयम्बरी जुगनू
तमाम उम्र तज़बज़ुब रहा ये आँखों को
गुलाबी पीला हरा या है बैंगनी जुगनू
बचा के अपना बदन रख तू रात की रानी
कहीं न छीन ले तेरी ये कम-सिनी जुगनू
सियाह रात उसे भी निगल गई देखो
बचा था पास मेरे इक जो आख़िरी जुगनू
उन्हें तू अश्क समझने की भूल करता है
जो मेरी आँख से गिरते हैं क़ीमती जुगनू
भटक भटक के ये शाइर अदब के जंगल में
पकड़ते रहते हैं सारे तसव्वुरी जुगनू
ग़ज़ल में हट के ज़रा और कुछ कहो साहिल
रदीफ़ बज़्म में बाँधी हैं सब ने ही जुगनू
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